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________________ 418 2-2-3-3-1 (499) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन आचाराङ्गसूत्रे श्रुतस्कन्ध-२ चूलिका - 2 अध्ययन - 3 सप्तैककः - 3 7 उच्चार-प्रस्रवण // अब तृतीय सप्तैकक स्वरुप अध्ययन करतें हैं, यहां परस्पर इस प्रकार अभिसंबंध है कि- दूसरे अध्ययन में निषीधिका का स्वरुप कहा, अब उस निषीधिका में किस प्रकार की भूमि के उपर उच्चारादि याने स्थंडिल-मात्रा करें इत्यादि अधिकार इस तृतीय सप्तैकक अध्ययन में कहेंगे... अब इस अध्ययन के नाम निष्पन्न निक्षेप के अधिकार में उच्चार-प्रस्रवण यह नाम है... अतः इस नाम की निरुक्ति स्वरुप अर्थ नियुक्तिकार श्री भद्रबाहुस्वामीजी नियुक्ति की गाथा के द्वारा कहतें हैं। शरीर में से जो विष्ठा-मल उत् याने प्रबलता के साथ चार याने बाहर निकलता है वह उच्चार याने मल-विष्टा विसर्जन... तथा प्रकर्ष से जो टपकता है, झरता है वह प्रश्रवण याने मात्रु = लघुनीति (पेसाब)... तो अब साधु किस प्रकार से उच्चार एवं प्रश्रवण का त्याग करे कि- जिस क्रिया से साधु की शुद्धि हो, और अतिचार-दोष भी न हो... ? यह बात आगे की गाथा से कहतें हैं... छह (6) जीवनिकाय की रक्षा करने में उद्युक्त याने तत्पर ऐसा अप्रमत्त साधु आगे कहे जानेवाले सूत्र के अनुसार स्थंडिल याने निर्जीव भूमि के ऊपर उच्चार एवं प्रश्रवण याने मलमूत्र का त्याग करे... अब नियुक्ति-अनुगम के बाद सूत्रानुगम में सूत्र का उच्चार शुद्ध प्रकार से करना चाहिये... और वह सूत्र यह रहा... .. I सूत्र // 1 // // 499 // से भिक्खू० उच्चार-पासवण किरियाए उब्बाहिज्जमाणे सयस्स पायपुंछणस्स असईए तओ पच्छा साहम्मियं जाइज्जा। से भिक्खू० से जं पुण थंडिल्लं जाणेज्जा सअंडं० तह० थंडिल्लंसि नो उच्चार-पासवणं वोसिरिज्जा। ___ से भि० जं पुण थंडिल्लं0 अप्पपाणं जाव संताणयं, तह० थंडि० उच्चा० वोसिरिज्जा। से भिक्खू० से जं० अस्सिंपडियाए एणं साहम्मियं समुद्दिस्स वा अस्सिं० बहवे साहम्मिया समु० अस्सिं० एणं साहम्मिणिं समु० अस्सिंपडियाए० बहवे साहम्मिणीओ समु० अस्सिंo बहवे समण पगणिय समु० पाणाई, जाव उद्देसियं चेएइ,
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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