SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 446
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-2-1-1-1 (497) 407 आचाराङ्गसूत्रे श्रुतस्कन्ध-२ चूलिका - 2 ___ सप्त-सप्तिका अध्ययन - 1 सप्तैककः प्रथमः # स्थानम् // सातवां अध्ययन कहा, और इस सातवे अध्ययन के सूत्रार्थ कहने के साथ ही प्रथम चूडा = चूलिका समाप्त हुई... अब दूसरी चूडा-चूलिका कहतें हैं... यहां परस्पर यह अभिसंबंध है... यहां पहली चूलिका में वसति का अवग्रह कहा, अब किस प्रकार के उपाश्रय-स्थान में कहां काउस्सग्ग करना, कहां स्वाध्याय करना, एवं कहां स्थंडिल-मात्रा (वडीनीति-लघुनीति) आदि करना... इत्यादि बातें कहने के लिये यह दूसरी चूलिका कहतें हैं... और इस दूसरी चूलिका में भी सात अध्ययन हैं, वह इस प्रकार. इस द्वितीय चूलिका में उद्देशक रहित ही सात अध्ययन हैं और उनमें पहला स्थान नाम का अध्ययन है अतः इस संबंध से आये हुए इस प्रथम अध्ययन के उपक्रमादि चार अनुयोग द्वार होते हैं, उनमें उपक्रम के अंतर्गत अर्थाधिकार इस प्रकार है... कि- साधु किस प्रकार के स्थान-वसति में निवास करें... और नाम निष्पन्न निक्षेप में "स्थान" यह नाम है... और उसके नामादि भेद से चार निक्षेप होतें हैं... 1. नाम स्थान, 2. स्थापना स्थान, 3. द्रव्य स्थान, एवं 4. भाव स्थान... इन चारों में से यहां द्रव्य स्थान का अधिकार है... अतः साधु उर्ध्व याने उंचे स्थान में निवास करें... और दूसरे अध्ययन का नाम निशीधिका है, उसके छह (E) निक्षेप होतें हैं किंतु वे छह निक्षेप दूसरे अध्ययन के अवसर में ही कहेंगे... अभी शुद्ध उच्चारण के साथ सूत्र उच्चारण करने के लिये यह पहला सूत्र है.... I सूत्र // 1 // // 497 // से भिक्खू वा० अभिकंखेज्जा ठाणं ठाइत्तए, से अणुपविसिज्जा गामं वा जाव रायहाणिं वा, से जं पुण ठाणं जाणिज्जा, सअंडं वा जाव0 मक्कडासंताणयं, तं तह० ठाणं अफासुयं अणेसणिज्जं0 लाभे संते नो पडि०, एवं सिज्जागमेण नेयत्वं जाव उदयपसूयाइंति / इच्चेयाई आयतणाइं उवाइक्कम्म अह भिक्खू इच्छिज्जा चउहिं पडिमाहिं ठाणं ठाइत्तए, तत्थिमा पढमा पडिमा अचित्तं खलु उवसज्जिज्जा अवलंबिज्जा काएण विप्परिकम्माइं सवियारं ठाणं ठाइस्सामि, पढमा पडिमा। अहावरा दुच्चा पडिमा- अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा अवलंबिज्जा काएण विप्परिकम्माइ नो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि, दुच्चा पडिमा।
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy