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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-7-2-3 (495) 399 यावत् मकडी के जाले से रहित है और तिरच्छे छेदे हुए हैं तथा बीज-गोटली नीकाली हुए है, अतः प्रासुक-कल्पनीय हैं इस स्थिति में यदि कारण उपस्थित हो तो उन आमफलों को प्राप्त होने पर ग्रहण करें... इसी प्रकार आमफल के अवयव संबंधित तीन सूत्रका भावार्थ जानीयेगा... किंतु- आमभित्तयं याने आम का आधा टुकडा, आमपेशी याने आम के छोटे टुकडे, आमचोयग याने आम की छाल, आम्सालग याने आम का रस, और आम्रडालग याने आम के छोटे छोटे . (बहोत हि छोटे) टुकडे इत्यादि... इसी प्रकार इक्षु याने सेलडी (गन्ने) के भी तीनों सूत्र के भावार्थ जानीयेगा... किंतु अंतरुच्छुयं का अर्थ है सेलडी के पर्वमध्य भाग... इसी प्रकार लशुन के भी तीनों सूत्र के भावार्थ को जानीयेगा... आमफल आदि सूत्र के विशेष भावार्थ के लिये नीशीथ सूत्र के सोलहवा (16) उद्देशक का भावार्थ जानना आवश्यक है... अब अवग्रह के विशेष अभिग्रह कहतें हैं... V सूत्रसार: प्रस्तुत सूत्र में आम फल, इक्षु खण्ड आदि के ग्रहण एवं त्याग करने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। आम आदि पदार्थ किस रूप में साधु के लिए ग्राह्य एवं अग्राह्य हैं, इसका नयसापेक्ष वर्णन किया गया है। और इसका सम्बन्ध केवल पक्व आम आदि से हे, न कि अर्ध पक्व या अपक्व फलों से। पक्व आम आदि फल भी यदि अण्डों आदि से युक्त हों, तिरछे एवं खण्ड-खण्ड में कटे हुए न हों तो साधु उन्हें ग्रहण न करे और यदि वे अण्डे आदि से रहित हों, तिरछे एवं खण्ड-खण्ड में कटे हुए हों तो साधु उन्हें ग्रहण कर सकता है। उस पक्व आम-फल के तिर्यक् एवं खण्ड-खण्ड में कटे हुए होने का उल्लेख उसे अचित्त एवं प्रासुक सिद्धि करने के लिए है। निशीथ सूत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यदि साधु सचित्त आम एवं सचित्त इक्षु ग्रहण करता है तो उसे चातुर्मासिक प्रायश्चित आता है। इससे स्पष्ट होता है कि साधु अचित्त एवं प्रासुक आम आदि ग्रहण कर सकता है। यदि वह पक्व आम-फल जीव-जन्तु से रहित हो और तिर्यक् कटा हुआ हो तो साधु के लिए अग्राह्य नहीं है... ___ अब अवग्रह के अभिग्रह के सम्बन्ध में सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र // 3 // // 495 // . से भिक्खू० आगंतारेसु वा जावोग्गहियंसि जे तत्थ गाहावईण वा गाहा० पुत्ताण वा इच्चेताई आयतणाई उवाइक्कम्म अह भिक्खू जाणिज्जा, इमाहिं सत्तहिं
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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