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________________ 372 2-1-6-1-1 (486) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन ग्रहण न करे। और यदि लकड़ी आदि के कल्पनीय पात्र पर लोह, स्वर्ण आदि के बहुमूल्य बन्धन लगे हों तब भी साधु उस पात्र को ग्रहण न करे। अतः साधु उक्त दोषों से रहित निर्दोष पात्र ही ग्रहण करे। - इसके अतिरिक्त चार प्रतिज्ञाओं के अनुसार पात्र ग्रहण करना चाहिए। 1. पात्र देख कर स्वयमेव याचना करूंगा। 2. साधु पात्र को देख कर गृहस्थ से कहे-आयुष्मन् गृहस्थ ! क्या तुम इन पात्रों में से अमुक पात्र मुझे दोगे। या वैसे पात्र बिना मांगे ही गृहस्थ दे दे तो मैं ग्रहण करूंगा। 3. जो पात्र गृहस्थ ने उपभोग में लिया हुआ है, वह ऐसे दो-तीन पात्र जिन में गृहस्थ ने खाद्यादि पदार्थ रखे हों वह पात्र ग्रहण करुंगा। 4. जिस पात्र को कोई भी नहीं चाहता, ऐसे उज्झितधर्मवाले पात्र को ग्रहण करूंगा। इन प्रतिज्ञाओं में से किसी एक का धारक मुनि किसी अन्य मुनि की निन्दा न करे। किन्तु यह विचार करता हुआ विचरे कि जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा का पालन करने वाले सभी मुनि आराधक है। पात्र की गवेषणा करते हुए साधु को देख कर यदि कोई गृहस्थ उसे कहे कि आयुष्मन् श्रमण ! इस समय तो तुम जाओ। एक मास के बाद आकर पात्र ले जाना, इत्यादि। इस विषय में शेष वर्णन वस्त्रैषणा के समान जानना। ___ यदि कोई गृहस्थ साधु को देख कर अपने कौटुम्बिक जनों में से किसी पुरुष या स्त्री को बुलाकर यह कहे कि यह पात्र लाओं उस पर तेल, घृत, नवनीत या वसा आदि लगाकर साधु को देवें। शेष स्नानादि शीत उदक तथा कन्द-मूल विषयक वर्णन ववैषणा अध्ययन के समान जानीयेगा। __ यदि कोई गृहस्थ साधु से इस प्रकार कहे कि आयुष्मन् श्रमण ! आप मुहूर्त पर्यन्त ठहरें। हम अभी अशनादि चतुर्विध आहार को उपस्कृत करके आपको जल और भोजन से पात्र भर कर देंगे। क्योंकि साधु को खाली पात्र देना अच्छा नहीं रहता। तब साध उनसे इस. प्रकार कहे कि आयुष्मन् गृहस्थ ! या भगिनि-बहिन ! मुझे आधाकर्मिक आहार-पानी ग्रहण करना नहीं कल्पता। अतः मेरे लिए आहारादि सामग्री को एकत्र और उपसंस्कृत मत करो। यदि तुम मुझे पात्र देने की अभिलाषा रखते हो तो उसे ऐसे ही दे दो। साधु के इस प्रकार कहने पर भी यदि गृहस्थ भोजन आदि बना कर उससे पात्र को भर कर दे तो साधु उसे अप्रासुक जानकर स्वीकार न करे।
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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