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________________ 366 2-1-5-2-3 (485) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन में कोइ संस्कार न करें यह यहां सारांश है... तथा गंदे वस्त्रों को अच्छे (साफ) न करें... इत्यादि सूत्र सुगम है... किंतु यहां विह पद से-अरण्य अटवी का मार्ग जानीयेगा... तथा मार्ग में यदि उस साधु को वस्त्र लेने की इच्छावाले चौर मीले... इत्यादि पूर्ववत् जानीयेगा... यावत् उस साधु का निर्दोष आचरण ही सच्चा साधुपना है... इति... V सूत्रसार : . प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि साधु उज्ज्वल या मलीन जैसा भी वस्त्र मिला है वह उसे उसी रूप में धारण करे। किन्तु, वह न तो चोर आदि के भय से उज्ज्वल वस्र को मलीन करे और न विभूषा के लिए मलीन वस्त्र को साफ करे। और नए वस्त्र को प्राप्त करने की अभिलाषा से साधु अपने पहले के वस्त्र को किसी अन्य साधु को न दे और न किसी से अदला-बदली करे तथा उस दृढ-मजबुत वस्त्र को फाड़ कर भी न फेंके। सूत्रकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि साधु को सदा निर्भय होकर विचरना चाहिए। यदि कभी अटवी पार करते समय चौर मिल जाएं तो उनसे अपने वस्त्र को बचाने की दृष्टि से साधु रास्ता छोड़ कर उन्मार्ग की ओर न जाए। यदि वे चोर साधु से वस्त्र मांगे तो साधु उस वस्त्र को जमीन पर रख दे, परन्तु उनके हाथ में न दे और उसे वापिस लेने के लिए उनके सामने गिड़गिड़ाहट भी न करे और न उसकी खुशामद ही करे। यदि अवसर देखे तो उन्हें धर्म का उपदेश देकर सन्मार्ग पर लाने का प्रयत्न करे। इससे यह स्पष्ट होता है कि वस्त्र केवल संयम साधना के लिए है, न कि ममत्व के रूप में है। अतः साधु को किसी भी स्थिति में उस वस्त्र पर ममत्वभाव नहीं रखना चाहिए। इससे साधु जीवन के निर्ममत्व एवं निर्भयत्व का स्पष्ट परिचय मिलता है। 'तिबेमि' की व्याख्या पूर्ववत् समझनी चाहिए। . // प्रथमचूलिकायां पञ्चमवखैषणाध्ययने द्वितीयः उद्देशकः समाप्तः // // समाप्तं च पञ्चममध्ययनम् / /
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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