________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-5-1-5 (479) 343 पुरुषान्तर कृत हो गया हो तो साधु उसे ग्रहण कर सकता है। इससे सपष्ट होता है कि जो वस्त्र मूल से साधु के लिए ही तैयार किया गया हो उसे साधु किसी भी स्थिति-परिस्थिति में स्वीकार न करे–चाहे वह पुरुषान्तर कृत हो या न हो, हर हालत में वह अकल्पनीय है। परन्तु, जो वस्त्र मूल से साधु के लिए नहीं बनाया गया है, परन्तु उसके तैयार होने के बाद साधु के निमित्त उसमें कुछ विशेष क्रियाएं की गई हैं। ऐसी स्थिति में साधु उसे तब तक स्वीकृत नहीं कर सकता, जब तक कि वह पुरुषान्तरकृत नहीं हो गया हो। यदि किसी व्यक्ति ने उसे अपने उपयोग में ले लिया हो, तो फिर साधु उसे ले भी सकता है। इस वस्त्र प्रकरण को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... सूत्र . // 5 // // 479 // से भिक्खू वा से जाइं पुण वत्थाई जाणिज्जा, विरूवरूवाइं महद्धणमुल्लाई तं0- आइणगाणि वा सहिणाणि वा सहिणकल्लाणाणि वा आयाणि वा कायाणि वा खोमियाणि वा दुगुल्लाणि वा पट्टाणि वा मलयाणि वा पण्णुण्णाणि वा अंसुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरांगाणि वा अमिलाणि वा गज्जफलाणि वा फालियाणि वा कोयवाणि वा कंबलगाणि वा पावराणि वा अण्णयराणि वा तह० वत्थाई महद्धणमुल्लाइं लाभे संते नो पडिगाहिज्जा। से भि० आइण्णपाउरणाणि वत्थाणि जाणिज्जा, तं- उद्दाणि वा पेसाणि वा पेसलाणि वा किण्हमिगाईणगाणि वा नीलमिगाईणगाणि वा गोरमि० कणगाणि वा कणगकंताणि वा कणगपट्टाणि वा कणगखइयाणि वा कणगफुसियाणि वा वग्याणि वा विवग्याणि वा आभरणाणि वा आभरणविचित्ताणि वा अण्णयराणि तह० आईण पाउरणाणि वत्थाणि लाभे संते नो पडिगाहिज्जा || 479 // // संस्कृत-छाया : स: भिक्षुः वा स: यानि पुनः वस्त्राणि जानीयात्- विरूपरूपाणि महाधनमूल्यानि तद्यथा आजिनानि वा श्लक्ष्णानि वा श्लक्ष्णकल्याणानि वा आजकानि वा कायकानि वा शौमिकानि वा दुकूलानि वा पट्टानि वा मलयानि वा वल्कलतन्तुनिष्पन्नानि प्रणुन्नानि वा अंशुकानि वा चीनांशुकानि वा देशरागाणि वा अमिलानि वा गज्जफलानि वा फालिकानि वा, कोयवानि वा, कम्बलकानि वा प्रावरणानि वा अन्यतराणि वा तथाo वखाणि महाधनमूल्यानि लाभे सति न प्रतिगृह्णीयात् / सः भिo आजिनप्रावरणीयानि वस्त्राणि जानीयात्, तद्यथा- उद्राणि वा पेसानि