________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-4-1-3 (468) 317 इति वा धर्मप्रिय इति वा एतत्प्रकारां भाषां असावद्यां यावत् अभिकाढ्य भाषेत। स: भिक्षुः वा स्त्री आमन्त्रयन् आमन्त्रितां च अप्रतिशृण्वतीं न एवं वदेत्- हे होलि ! इति वा हे गोलि ! इति वा इत्यादि स्त्री-गमेन नेतव्यम् / स: भिक्षुः वा स्त्री आमन्त्रयन् आमन्त्रितां च अप्रतिशृण्वती एवं वदेत्- हे . आयुष्मति ! इति वा, हे भगिनि ! इति वा हे भोगिनि ! इति वा, हे भगवति ! इति वा, हे श्राविके ! इति वा, हे उपासिके ! इति वा, हे धार्मिके ! इति वा, हे धर्मप्रिये ! इति वा, एतत्प्रकारां भाषां असावद्यां यावत् अभिकाक्ष्य भाषेत // 468 // III सूत्रार्थ : संयमशील साधु या साध्वी पुरुष को आमंत्रित करते हुए उसके न सुनने पर उसे हे होल ! हे गोल ! हे वृषल ! हे कुपक्ष ! हे घटदास ! हे श्वान ! हे चोर ! हे गुप्तचर ! हे कपटी! हे मृषावादी / तुम यहां हो क्या ? और तुम्हारे माता-पिता भी इसी प्रकार के हैं क्या ? विवेक शील साधु इस तरह की सावध, सक्रिय यावत् जीवोपघातिनी भाषा को न बोले। किन्तु संयमशील साधु अथवा साध्वी कभी किसी व्यक्ति को आमंत्रित कर रहे हों और वह न सुने तो उसे इस प्रकार संबोधित करे- हे अमुक व्यक्ति ! हे आयुष्मन् ! हे आयुष्मानों ! हे श्रावक। हे उपासक ! हे धार्मिक ! हे धर्मप्रिय ! आदि इस प्रकार की निरवद्य पापरहित भाषा को बोले... इसी तरह संयमशील साधु या साध्वी स्त्री को बुलाते समय उसके न सुनने पर उसे हे होली ! हे गोली ! इत्यादि जितने सम्बोधन पुरुष के प्रति ऊपर दिये गये है। उन नीच संबोधनों से संबोधित न करे किन्तु उस के न सुनने पर उसे हे आयुष्मति ! हे भगिनि ! हे बहिन ! हे पूज्य / हे भगवति / हे श्राविके / हे उपासिके ! हे धामिके और हे धर्मप्रिये ! इत्यादि पापरहित कोमल एवं मधुर शब्दों से संबोधित करे। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. जब कभी किसी पुरुष को अभिमुख (आमंत्रण) करना चाहे तब या बुलाने पर भी नहि सुन रहे हो तब इस प्रकार के वचन न बोलें... जैसे कि- हे होल ! गोल ! यह दोनों शब्द अन्य देश में अवज्ञा-तिरस्कार सूचक है... तथा वसुल याने वृषल... तथा कुपक्ष याने निंदनीय वंशवाले ! तथा हे घटदास... या हे कुत्ता ! या हे चौर ! या हे चारिक ! या हे मायावी ! या हे मृषावादी... इत्यादि प्रकार के वचनवाला तुं है या तेरे मा-बाप है इत्यादि इस प्रकार की कठोर भाषा साधु कभी भी न बोलें... किंतु इससे भिन्न प्रकार से बोलना चाहिये... वह इस प्रकार- वह साधु किसी गृहस्थ (पुरुष) को अभिमुख कर रहे हो या, बुलाने पर भी सुनता न हो तब उसको इस प्रकार के वचन कहें... जैसे कि- हे अमुक ! हे आयुष्मान्