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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-3-3-4 (464) 299 III सूत्रार्थ : संयमशील साधु अथवा साध्वी को यामानुग्राम विहार करते हुए मार्ग में यदि मदोन्मत्त वृषभ-बैल या विषैले सांप या चीते आदि हिंसक जीवों का साक्षात्कार हो तो उसे देखकर साधु को भयभीत नहीं होना चाहिए तथा उनसे डरकर उन्मार्ग में गमन नहीं करना चाहिए और मार्ग से उन्मार्ग का संक्रमण भी नहीं कस्ना चाहिए। और गहन वन एवं विषम स्थान में भी साधु प्रवेश न करे, एवं न विस्तृत और गहरे जल में ही प्रवेश करे और न वृक्ष पर ही चढ़े। इसी प्रकार वह सेना और अन्य साथियों का आश्रय भी न ढूंढे, किन्तु राग-द्वेष से रहित होकर यावत् समाधिपूर्वक ग्रामानुयाम विहार करे। यदि साधु या साध्वी को विहार करते हुए मार्ग में अटवी आ जाए तो साधु उसको जानले, जैसे कि अटवी में चोर होते हैं और वे साधु के उपकरण लेने के लिए इकट्ठे होकर आते हैं, यदि अटवी में चोर एकत्रित होकर आएं तो साधु उनसे भयभीत न हो तथा उनसे डरकर उन्मार्ग की ओर न जाए किन्तु राग-द्वेष से रहित होकर यावत् समाधिपूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करने में प्रवृत्त रहे। IV टीका-अनुवाद : ___ एक गांव से दूसरे गांव में जाते हुए साधु को जब मार्ग में मदोन्मत्त बैल देखने में आवे... या क्रूर सिंह, वाघ, चित्ता या उनके बच्चे दीखे तब उनके भय से मार्ग को छोडकर उन्मार्ग से न जावें... तथा गहन वनराजी में भी प्रवेश न करें... तथा वृक्ष आदि के उपर भी न चढ़े और जल में भी प्रवेश न करें तथा अन्य कोई शरण याने आश्रय को भी न ढूंढे... न चाहें... किंतु उत्सुकता को छोडकर शांत मनवाला होकर संयमी होकर हि मार्ग में चलें... यह बात गच्छ-निर्गत याने जिन-कल्पवालों के लिये है... और जो गच्छवास में रहते हैं वे स्थविर कल्पवाले तो मदोन्मत्त क्रूर बैल आदि का दूर से हि त्याग करें... तथा व्यामांतर की और जाते हुए उन साधुओं को मार्ग में यदि अटवी जैसा लंबा मार्ग आवे, और वहां लुटेरे-चौर वस्त्रादि उपकरण लुटने के लिये आवें, तब उनके भय से साधु उन्मार्ग में न जावें... इत्यादि... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में साधु की निर्भयता के सर्वोत्कृष्ट स्वरूप का वर्णन किया गया है। इसमें . बताया गया है कि यदि साधु को रास्ते में उन्मत्त बैल, शेर आदि हिंसक प्राणी मिल जाएं या कभी मार्ग भूल जाने के कारण भयंकर अटवी में गए हुए साधु को चोर, डाकू आदि मिल जाएं तो मुनि को उनसे भयभीत होकर इधर-उधर उन्मार्ग पर नहीं जाना चाहिए, न वृक्ष पर
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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