________________ 688 39 | श्री सौधर्म बृहत्तापगच्छीय पट्टावली / शासनपति - त्रिशलानंदन श्री महावीरस्वामीजी (1) श्री सुधर्मस्वामीजी (27) श्री मानदेवसूरिजी (53) श्री लक्ष्मीसागरसूरिजी (2) श्री जम्बू स्वामीजी (28) श्री विबुधप्रभसूरिजी (54) श्री सुमतिसाधुसूरिजी (3) श्री प्रभवस्वामीजी (29) श्री जयानन्दसृरिजी (55) श्री हेमविमलसूरिजी (4) श्री शय्यंभवसूरिजी (30) श्री रविप्रभसूरिजी (56) श्री आनंदविमलसूरिजी श्री यशोभद्रसूरिजी (31) श्री यशोदेवसूरिजी (57) श्री विजयदानसूरिजी श्री संभृतिविजयजी (32) श्री प्रद्युम्नसरिजी (58) श्री विजयहीरसूरिजी श्री भद्रबाहुस्वामीजी (33) श्री मानदेवसरिजी (59) श्री विजयसेनसूरिजी श्री स्थूलभद्रसूरिजी (34) श्री विमलचन्द्रसूरिजी (60) विजयदेवसूरिजी श्री आर्य महागिरिजी (35) श्री उद्योतनसूरिजी श्री विजयसिंहसूरिजी श्री आर्यसुहस्तिसूरिजी (36) श्री सर्वदेवसूरिजी (61) श्री विजयप्रभसूरिजी ) श्री सुस्थितसूरिजी (39) श्री देवसूरिजी (62) श्री विजयरत्नसूरिजी श्री सुप्रतिबद्धसूरिजी (38) श्री सर्वदेवसरिजी (3) श्री वृद्धक्षमासूरिजी (10) श्री इन्द्रदिन्नसूरिजी (39) श्री यशोभद्रसूरिजी (64) श्री विजयदेवेन्द्रसूरिजी (11) श्री दिन्नसूरिजी श्री नेमिचन्द्रसूरिजी (65) श्री विजयकल्याणसूरिजी (12) श्री सिंहगिरिसूरिजी (40) श्री मनिचन्द्रसरिजी (66) श्री विजयप्रमोदसरिजी (13) श्री वज्रस्वामीजी (41) श्री अजितदेवसरिजी (67) श्री विजयरानेन्द्रसूरिजी म. (14) श्री वज्रसेनसूरिजी (42) श्री विजयसिंह सूरिजी (68) श्री धनचन्द्रसूरिजी (15) श्री चन्द्रसूरिजी (43) श्री सोमप्रभसूरिजी (69) श्री भूपेन्द्रसूरिजी (16) श्री समन्तभद्रसूरिजी श्री मणिरत्नसूरिजी (70) श्री यतीन्द्रसूरिजी (17) श्री वृद्धदेवसूरिजी (44) श्री जगच्चन्द्रसरिजी (71) श्री विद्याचन्द्रसरिजी (18) श्री प्रद्योतनसूरिजी (45) श्री देवेन्द्रसूरिजी (72) श्री हेमेन्द्रसूरिजी (19) श्री मानदेवसूरिजी श्री विद्यानन्द्रसूरिजी इत्यादि अनेक स्थविर आचार्यो के द्वारा जिनागम-प्रवचन की पवित्र (20) श्री मानतुंगसूरिजी (46) श्री धर्मघोषसूरिजी . परिपाटी आज हमें उपलब्ध हो रही (21) श्री वीरसूरिजी (47) श्री सोमप्रभसूरिजी है... गुरुपर्वक्र म से उपलब्ध यह (22) श्री जयदेवसूरिजी (48) श्री सोमतिलकसूरिजी सूत्र-अर्थ-तदुभयात्मक जिनागम शास्त्र श्री पावनकारी परिपाटी हि (23) श्री देवानन्दसूरिजी (49) श्री देवसुन्दरसुरिजी लवणसमुद्र तुल्य इस विषम (24) श्री विक्रमसूरिजी (50) श्री सोमसुंदरसूरिजी दुःषमकाल (पांचवे आरे) में भी. वनकाल मधुरजल की सरणी के समान होने (25) श्री नरसिंहसूरिजी (51) श्री मुनिसुन्दरसूरिजी से भव्य जीवों के आत्महित के लिये (26) श्री समुद्रसूरिजी (52) श्री रत्नशेखरसरिजी पर्याप्त है... -मुनि दिव्यचंद्रविजय...