________________ 100 2-1-1-7-1 (371) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन अशनं वा, लाभे सति न प्रतिगृह्णीयात् / स: भिक्षुः वा यावत् प्रविष्टः सन् सः यत् अशनं वा, कोष्ठिकातः वा अधोवृत्तखाताकारात् वा असंयतः भिक्षुप्रतिज्ञया उत्कुब्जीभूय अधोऽवनम्य तिरधीनो भूत्वा आहृत्य दद्यात्, तथाप्रकारं अशनं वा लाभे सति न प्रतिगृह्णीयात् // 371 // III सूत्रार्थ : . गृहस्थ के घर भिक्षा के लिये गए साधु और साध्वी को ऐसा जानने में आता है किअशनादि दिवार पर, स्तंभ पर, मांचे पर प्रासाद पर, हवेली की छत पर अथवा ऐसे कोई अन्य ऊंचे स्थान पर रखा हुआ है। तो ऐसे स्थान पर से लाया गया दिया जानेवाला आहार अप्रासुक है। इससे ऐसा आहार ग्रहण न करे। केवली भगवंत कहते है कि- यह कर्मबंध का कारण है। क्योंकि- असंयमी गृहस्थ साधु के निमित्त बाजोठ, पाट, पाटियुं, सीडी लाकर उसको ऊंचा कर उपर चढ़ेंगे, संभव है कि वहां से फिसल जाये, गीर जाये। यदि फिसलें या गीरे तो उसके हाथ-पैर या शरीरका कोई भी अवयव या कोई इन्द्रिय के अंगोपांग तूट जाय, फूट जाये और प्राणी, भूत, जीव तथा सत्व की हिंसा करेंगे। उनको त्रास होगा। या कूचला जायेंगे। उनके अंगोपांग तूट जायेंगे। टकरायेंगे ! मसलायेंगे। टकरायेंगे, रगडायेंगे, संताप पायेंगे, पीडित होंगे, किलामणा होगी, उपद्रव पायेंगे, एक स्थान से दूसरे स्थान पर गिरेंगे। इसलिए इस प्रकारके मालोपहृत भिक्षा मिलने पर भी साधु ग्रहण करे नहीं। अशन आदिको गृहस्थ के घर गये साधु अथवा साध्वी जाने कि- यह अशन आदि कोठी में से या कोठा में से साधु के निमित्त ऊंचा होकर, नीचे झुककर, शरीर को संकोचकर या आडे होकर आहार लाकर बहोरा रहे है तो उस अशनादि को लाभ होने पर भी ग्रहण न करे // 371 // . IV टीका-अनुवाद : ___वह साधु या साध्वीजी म. आहारादि के लिये गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर देखे कि- चारों प्रकार के आहारादि-स्कंध याने आधे प्राकार पे है. स्तंभ याने पत्थर या लकडी के थंभे पे है, तथा मांचडे पे, माले पे, प्रासाद याने महल-घर के उपर, तथा हवेली के उपर या अन्य कोई भी ऐसे प्रकार के आकाश में रहे हुए आहारादि को वहां से लाकर यदि गृहस्थ दे तब मालापहृत-दोष मानकर साधु ऐसे आहारादि को ग्रहण न करे... केवलज्ञानी प्रभु कहतें हैं कि- यह मालापहृत आहारादि आदान है... अर्थात् कर्मबंध का कारण है... जैसे कि- गृहस्थ साधुओं को दान देने के लिये पीठक, या फलक, या निसरणी, या उदूखल (सांबेलु) लाकर खडा रखकर उसके उपर चढे और चढते चढते स्खलित हो या गिर जाय तब हाथ, पाउँ आदि शरीर के कोइ भी अंगोपांग को चोंट लगे तथा अस एवं स्थावर जंतुओं को भी दुःख हो, या त्रास पहुंचाये... या क्लेश-परिताप हो, या एक स्थान से दुसरे स्थान पे संक्रमित हो... ऐसा