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________________ 76 2-1-1-5-3 (361) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन करके फिर अचित्त पानी से साफ करे। इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्मस्वामी आगे का सूत्र कहेंगे। सूत्र // 3 // // 361 // से भिक्खू वा० से जं पुण जाणिजा गोणं वियालं पडिपहे पेहाए, महिसं वियालं पडिपहं पेहाए, एवं मणुस्सं आसं हत्थिं सीहं वग्धं विगं दीवियं अच्छं तरच्छं परिसरं सियालं बिरालं सुणयं कोलसुणयं कोकंतियं चित्ताचिल्लडयं वियालं पडिपहे पेहाए से सइ प रक्कमे संजयामेव परक्कमेजा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा / से भिक्खू वा समाणे अंतरा से उवाओ वा खाणुए वा कंटए वा घसी वा भिलुगा वा विसमे वा विजले वा परियावजिजा, सह परक्कमे संजयामेव, नो उज्जुयं गच्छिज्जा। || 361 // II संस्कृत-छाया : सः भिक्षाः वा सः यत् पुनः जानीयात्-गां व्यालं प्रतिपथे प्रेक्ष्य, महिषं व्यालं प्रतिपथे प्रेक्ष्य एवं मनुष्यं अवं हस्तिनं सिंहं व्याघ्रं वृकं द्वीपिनं ऋक्षं तरक्षं सरभं शृगालं बिडालं थूनकं कोलथूनकं (महाशूकर) लोमकं चित्ताचिल्लडयं (जंगली पशु) व्यालं प्रतिपथे प्रेक्ष्य सति पराक्रमे संयतः एव पराक्रमेत, न ऋजुना गच्छेत् / सः भिक्षुः वा प्रविष्टः सन् अन्तराले सः अवपात: वा स्थाणु वा कण्टक: वा घसी वा, भिलुगा वा विषमं वा विजलं वा पर्यापद्येत, सति पराक्रमे संयत एव, न ऋजुना गच्छेत् // 361 // III सूत्रार्थ वह साधु और साध्वी भिक्षा लेने के लिए जा रहे हो तब वे जाने कि- मार्ग में दुष्ट मदोन्मत सांड़, भंसा, मनुष्य, अश्व, हाथी, सिंह, बाघ, भेडिया, चित्ता, तरश, व्याघ्र, सरभ (अष्टापद) सियार, बिल्ला, कुत्ता, वराह, सूअर, लोमडी या के चित्तचिल्लडय-एक प्रकार का जंगली प्राणी रास्ते में हो और दूसरा रास्ता भी हो तो उस भयवाले सीधे रास्ते पर न जाऐ किंतु दूसरे रास्ते से जाऐ। साधु अथवा साध्वी मार्ग में जा रहे हो तब मार्ग में खड़े, ढूंठ, कांटे उतराई की भूमि हो, फटी हुई जमीन, विषमता अथवी कीचड़ आदि हो तो उस मार्ग से न जाए, यदि दूसरा मार्ग हो तो उस मार्ग से जाएं। / / 361 // IV टीका-अनुवाद : वह साधु भिक्षा के लिये गांव की ओर निकला हुआ मार्ग में उपयोग दे, और यदि ऐसा ज्ञात हो कि- यहां कोई उन्मत्त बैल आदि मार्ग को रोके है... तब अन्य मार्ग हो तो उस मार्ग से न जायें... क्योंकि- वहां संयम विराधना एवं आत्मविराधना होने की संभावना है...
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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