________________ Petiese Leute त्रिभुवन कल्याण कर्ता प्रभो! साक्षात् शंकर आप ही हो। मोक्ष मार्ग के विधि विधेता, धीरज विधाता आप ही हो, पौरूष को उजागर करते, अहो पुरुषोत्तम भी आप ही हो / / 25 / / त्रिभुवन के दुःख हर्ता भगवन्! नमस्कार हो मेरा तुम्हें, संसार तल के मात्र भूषण, नमस्कार हो मेरा तुम्हें / तीनों जगत के परम ईश्वर, नमस्कार हो मेरा तुम्हें , भव जलधि के शोषण कर्ता, नमस्कार हो मेरा तुम्हें / / 26 / / * सर्व गुणों ने आप में, किया निवास यह आश्चर्य महा, ही हे मुनिश! वे अन्यत्र कहीं ना, जाते हैं अब छोड़ अहा। . दोषों को आश्रय अनेक मिले हैं, वे फूले नहीं समाते हैं। इसीलिये तो स्वप्न में भी, तुम्हें देख नहीं पाते हैं।।27 || TAGersGGersesGeegesGeet र नभ में उन्नत स्थिर रहे .जो, तरू अशोक शोभित होता, निर्मल आभायुक्त विराजित, तन अधिक प्रभासित होता / बादलों के समीप रहा ज्यौं, सूर्य गगन में शोभा पावे, सहस्त्र रश्मियाँ फैल रही हो, अज्ञान अंधेरा ध्वस्त होवे / / 28 / / विचित्र किरणों से दीपित हो, मणिरत्न जटित वह सिंहासन, अहो! विराजित सुन्दर लगती, कंचनवर्णी काया भगवन / उदयाचल पर्वत के शिखर पर, सूर्य ज्यों शोभित होता है, दैदीप्यमान देह परमात्मा का, मन को मोहित करता है।। 29 / / कुछ गुपके मशशुक श्रोतु यारस्ठुलाने वाले