________________ Leyes yes yes yes हाव-भाव करि, देवांगनाएं, नृत्य गायन करे अंगस्पर्शी, देह नग्न है ध्यान-मग्न प्रभु, की निर्विकार मन स्थिर बसी। h) प्रलय-काल के पवन निमित्ते, पर्वतादि भी विचलित होवे, ॐ अचलित है शिखर सुमेरू, फिर मन सुमेरू क्यों न होवे ? / / 1 5 / / sticos धुम्रबाती से रहित सदा जो, तेल का भी कुछ काम नहीं, तीन जगत में सहज उदित है, अद्वितीय दीपक आप तुम्हीं। अचलित को चलित करे जो, पवन बुझा सकता न कभी, ॐ तीन जगत में अपर दीप हो, अलौकिक आलोक फैलाओ तभी।। 16 / / र अस्त न होते कभी कदाचित, राहू भी ग्रसता ना कभी, 1) सहज स्पष्ट स्वाभाविक रीति से, प्रकाशित होते क्षेत्र सभी। ( बादलों से आच्छादित होवे ना, महाप्रभावी विलक्षण जो, सैकड़ों सूर्यों से भी महिमाशाली, तीन लोक में मुनिन्द्र वो।। 17 / / RECORDIST- 99902 नित्य उदित जो रहे सर्वदा, मोह महातम ध्वंस करे , राहू कभी न बाध्य करे, न बादल मिल उद्योत हरे / 3 चन्द्र कान्ति सम निर्मल तेरा, मुख मलिन न होय कभी, हे प्रभो! आप त्रिजगत प्रकाशित, दिव्य चंद्रमा आप तभी।। 18 / / Lesot getoetusteget दिवस रात में जो फेरी लगाते, उन सूर्य चन्द्र की क्या जरूरत, जब कि हे नाथ! तब मुखचन्द्र ही, दूर करता अंधकार समस्त / धान्यशालि जब पक चुके खेत में, अम्बोनिधि को निहारे कौन, अप्रमत्त ज्ञानी भक्त सदा, अन्तर्ज्ञान में ही रहते हैं मौन / / 19 / /