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________________ GRLegensikGLAGestage telesostos ) लक्ष्य तो लोक कल्याण रहा है। प्रभु ऋषभदेव की शाश्वत-वाणी + जिस सम्पत्ति और सत्ता के लिए लोग लड़ मरते है; (s उसका वास्तविक मूल्य वे नहीं जानते। एक हीरे का वास्तविक मूल्य उतना ही है, जितना किसी मार्ग पर पड़े पत्थर का। संपत्ति और सत्ता अमानवीय भाव और वैमनस्य पैदा करती है तथा प्राण तक ले लेती है। परिग्रह हिंसा का जनक है। अपरिग्रह अहिंसा का मूल है इसलिए उससे मैत्री, ( सद्भाव और शांति प्राप्त होती है। अहंकार मनुष्य को सहन नहीं होने देता। मानवता और सहजता, इन दोनों का ही वह शत्रु है। स्वयं को श्रेष्ठ समझने की कोशिश वस्तुतः स्वयं को हीन मानने की भावना से दरस्पर है (सतपाहता सहर होने की है। सहरहर कि अर्थात् स्वयं की स्वयं में स्थिति ही सम्यक् चारित्र है। ज्ञान के अभाव में पारस भी पत्थर समान है और ज्ञान के प्रकाश में पत्थर भी पारस बन जाता है / आत्मज्ञान अर्थात् स्वयं का ज्ञान मनुष्य की उन्नति के और सफलता के लिये है अनिवार्य है। अपने जीवन और सद्गुणों के विकास के लिए ज्ञान के द्वार पर दस्तक दो। __ संबोधि प्राप्त करो क्यों नहीं सुबद्ध होते हो। श्री वैदिक परम्परा में माघ कृष्णा चतुर्दशी के दिन आदिदेव का है 2 शिवलिंग के रूप में उद्भव होना माना गया है। भगवान आदिनाथ के शिव–पद प्राप्ति का इससे साम्य प्रतीत होता है / यह संभव है कि 5 भगवान ऋषभदेव की चिता पर जो स्तूप निर्मित हुआ वही आगे s deegers
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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