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________________ estetige gegee र करता और उनकी वाणी सुनता। इससे उसे सम्यक्त्व रूपी अमूल्य 8 5 रत्न की उपलब्धि हुई। वह दृढ़ धमानुरागी बन गया। धन्ना सार्थवाह ने सम्यक्त्व रूपी रत्न से अपनी आत्मा को आलोकित करके देव भव प्राप्त किया। वे पुनः मनुष्य बने / इस घर प्रकार उन्होंने मनुष्य और देव के दस भव किए। प्रभु ऋषभ का जीव ग्यारहवें भव में महाविदेह क्षेत्र की पुष्कलावती विजय में राजकुमार वजनाभ के रूप में उत्पन्न हुआ। कालान्तर में वज्रनाभ राजा बने / वे राजा से चक्रवर्ती सम्राट बने। चक्रवर्ती रूप में बहुत वर्षों तक शासन करने के पश्चात् उन्हें भोगों से विरक्ति हो गई। उन्होंने छह खण्ड के साम्राज्य को तिनके की है। 6) भांति ठुकरा दिया। वे मुनि बने / मुनि बनकर उन्होंने घोर तप . 1) किया। परिणाम स्वरूप उन्होंने 'तीर्थंकर नाम कर्म' का पुण्य बन्ध (5, किया। सुदीर्घ काल तक वजनाभ मुनि ने उत्कृष्ट संयम का पालन : कार करते हुए अनशनपूर्वक देह का त्याग किया। वे सर्वार्थसिद्ध विमान , 5) में महर्द्धिक देव बने। अवतरण-33 सागरोपम का सुखायुष्य पूर्ण करके वजनाभ का जीव नाभिराय कुलकर की अर्धांगिनी मरुदेवी की पावन कुक्षी S में अवतरित हुआ। माता मरुदेवी ने रात्री के चतुर्थ प्रहर में चौदह है र महान् स्वप्नों के दर्शन किए। वे चौदह स्वप्न क्रमशः इस प्रकार थे50 1. वृषभ 2. विशाल आकार तथा चार दांतों वाला हाथी, 3. सिंह 1) 4. कमलासन पर विराजित लक्ष्मी 5. पुष्पमाला, 6. पूर्णचन्द्र, 7. (S 12 सूर्य, 8. महेन्द्रध्वज, 9. स्वर्णकलश, 10. पद्मसरोवर, 11. र क्षीर समुद्र, 12. देव विमान, 1 3. रत्न राशि, 14. निर्धूम अग्नि। 2 ___स्वप्न-दर्शन के पश्चात् महामाता मरुदेवी की निद्रा टूट गई। Loetudes toestegeteisestuestestuesit
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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