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________________ Regusageskargestrengestaegeet-2 कर चुके थे। हस्तिनापुर में कई दिनों तक इस दिन की पावन स्मृति ( 1) में मंगल महोत्सव मनाए जाते रहे। सभी तरफ खुशियाँ छाई हुई / 2 थी, किन्तु फिर भी लोगों की जिज्ञासाओं का समाधान नहीं होने से र उनका मन बहुत व्यथित था। सरल स्वभावी लोगों के मन में पुनः पुनः रहस्यमयी घटना 2) से संबधित कई बातें उठती थीं कि - हमने प्रभु चरणों में सर्वस्व व श) अर्पित करना चाहा, किन्तु हाय हमारा हतभाग्य कि उन बहुमूल्य भेंट सामग्रियों को ग्रहण करना तो दूर, प्रभु ने उनकी तरफ नजर है। उठाकर भी नहीं देखा | चलो उनकी तरफ नहीं देखा तो कुछ नहीं, लेकिन हमने क्या बिगाड़ा था प्रभु का ? अहा, श्रेयांस द्वारा किये , गये इक्षु रस पर हमारे स्वामी कितने रीझ गये / उसको सहजता से स्वीकार कर लिया। ऐसा हमारे से कौन सा घोर अपराध हो गया Y? इस तरह की वे अनेक बातें सोच रहे थे। आखिर सभी ने एक साथ निर्णय किया और श्रेयांसकुमार से ही इस रहस्य का पता 5 लगाने के लिये राजमहल की ओर चल पड़े। श्रेयांसकुमार लोगों की पुकार सुनकर नीचे आ गये। मुस्कराते / हुए उन्होंने एक नजर से सभी की ओर देखा और इतने बड़े समूह ( ) का एक-साथ मिलकर आने का कारण जानना चाहा। Ma लोगों के मन की बात आज मन में समा नहीं रही थी। वे तो श्रेयांसकुमार के पूछने की प्रतीक्षा किये बिना ही बोल पड़े। "महाराज आप धन्य हैं आप परम सौभाग्यशाली हैं जो प्रभु ने आपके हाथों से इक्षुरस ग्रहण किया। हमारे जैसे अभागियों को हजार बार धिक्कार है. हमारे सर्वस्व त्याग की ओर प्रभु ने आँख 2 उठाकर भी नहीं देखा / वर्षों तक पुत्रवत् पालन करने वाले हमारे हृदय सम्राट् इतने अनजान बनकर परायों जैसा व्यवहार करेंगे, ऐसी हमें स्वप्न में भी आशा नहीं थी, किन्तु कृपावतार प्रभु का ऐसा தலைைைத GeegessesGeetsGokGeeeeeeeeeeees
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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