________________ eGuidegendagers-gogereges तृतीय अध्याय ग्रीष्म ऋतु का आगमन हुआ। चैत्र मास की कृष्णाष्टमी का 1 शुभ दिन आ ही गया। आज सम्पूर्ण वनिता नगरी में भारी चहल) पहल थी। श्री ऋषभदेव के महाभिनिष्क्रमण की तैयारियाँ हो रही / थीं। देवगण भी प्रभु के दीक्षा महोत्सव में सम्मिलित थे। देवनिर्मित i) अद्भुत शिविका में विराजमान वैराग्यमूर्ति प्रभु ऋषभदेव की वह 1) छवि दर्शनीय थी। चतुर्थ प्रहर में विशाल समुदाय के साथ प्रभु (, Fa) नंदनोद्यान में पधारे / सुन्दर व बहुमूल्य वस्त्राभूषणों का प्रभु ने क्षणभर में सर्प केंचुलीवत् परित्याग कर दिया। कोमल व सच्चिकण * केशों का चारमुष्टि लुंचन किया। अपार भीड़ प्रभु द्वारा कृत व & आचरित उस नवीन धर्म क्रिया को देखकर दंग रह गई। सम्पूर्ण * आत्मबल के साथ प्रभु ने 'णमो सिद्धाणं' का उच्चारण करते हुए हे पंच महाव्रत रूप धर्म स्वीकार किया। , र आन्तरिक प्रीति से बंधे हुए. कच्छ महाकच्छ आदि चार है। 2 हजार राजाओं से प्रभु का वियोग सहन नहीं हुआ 'गतानुगतिको Y लोकः' के अनुसार वे भी प्रभु ऋषभदेव के समान ही अपने पुत्रों को 6) राज्यश्री सौंपकर गृह त्यागी बन गये। साधुचर्या से अनभिज्ञ वे मात्र 6 प्रभु चरणों का अनुगमन करने में लगे रहे। इस अवसर्पिणी काल के प्रथम साधु श्री ऋषभ द्रव्य भाव 5 रूप से निर्ग्रन्थ बनकर जंगल, पर्वत, उद्यान, शहर आदि स्थानों में தலைமைழைமைதை Lestugesetetueretestosteros oeste