________________ les gestest egestas seen ऊँ श्री ऋषभदेवाय नमो "णमो बंभिए लिविए' ज ऋषभ-चरित्र ( प्रथम अध्याय ) "आदि पुरूष आदीशजिन, आदि सुविधि करतार। धरम धुरन्धर परमगुरू, नमो आदि अवतार।" Recentagedeseeeeeeeeeee अखिल मानव संस्कृति के आदि प्रणेता, भरतक्षेत्र के प्रथम पृथ्वीनाथ महाराज ऋषभदेव नंदनोद्यान के लतामंडप में स्फटिक शीला पर विराजमान थे। धीर, गंभीर महाराज मंत्रमुग्धता से प्राकृतिक सौन्दर्य का अवलोकन कर रहे थे। प्रकृति के स्वाभाविक सौन्दर्य का निरीक्षण करते हुए महाराज कभी स्वभावतः अन्तर्मुखी होकर आत्मानन्द में लीन हो जाते थे। वसंतऋतु का शुभारम्भ हो चुका था। नंदनवन पंचवर्णी Pal पुष्पों की रूप छटा को बिखेर कर पंच परमेष्ठिमय श्री ऋषभदेव एवं श्री अयोध्यावासियों का स्वागत करता हुआ सा प्रतीत हो रहा था। पवन के संचरण से पुष्पों की सौरभ चतुर्दिक फैलकर वातावरण को मादक बना रही थी। अशोक, बकुल, कदंब आदि वृक्षों की डालियाँ पुष्पों के भार से झुकी हुई थीं। समूचे वन प्रदेश की शोभा अनन्य व दर्शनीय थी। कोयल पंचम स्वर में नगरवासियों को वसंतश्री के आगमन gegetegetve egengestgestes