________________ gessemessageegeegeeg | भरत राजा RELATEGORKOREGREET9NERART (तर्ज-पदम प्रभु पावन नाम....) 11. भरत राजा घर में ही वैरागी, वे तो अन्न जल के हैं त्यागी।।ध्रुव / / क्रोड़ अठारा तुरंग घर जांके, क्रोड चौरासी पागी। लक्ष चौरासी गज, रच, सोहे तो भी भये नहीं रागी।। .. 2. तीन क्रोड गोकुल घर 'जाके', एक क्रोड हल साजे। ____ चवदा रत्न नव निधि के स्वामी, मन तृष्णा सब भागी।। 23. चार क्रोड नाज मन उठ नित लण लाख दस लागे। ॐ क्रोड़ थाल कंचन मणि सोहे, मन वांछा सब दागी।। 4. ज्यौं जल बीच कमल अंते उर, नाहीं भये वो तो रागी। ___ भविजन होवे सो ही उर धारे, धन धन हो बड़े भाजी। Stingetragene ocioeoeoeoertuige सभी तीर्थकरों का प्रथम पारणा खीर से ऋषभ प्रभु का प्रथम पारणा इक्षु रस से। भ. ऋषभदेव का देव-द्रव्य वस्त्र नहीं रहा। प्रथम पारणे के समय जघन्य साढ़े बारह लाख स्वर्णमोहरों की उत्कृष्ट साढ़े बारह करोड़ स्वर्ण मोहर वृष्टि होती है। तीर्थंकर प्रभु का पारणा कराने वाला भाग्य शाली उसी भव में या तीसरे-भव में मोक्ष प्राप्त करता है। तीर्थंकर प्रभु साधनाकाल में प्रायः मौन रहते हैं, तथा भूमि पर भी नहीं बैठते हैं।