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________________ आगम निबंधमाला धर्मकथा कहता है अथवा जो सदा धर्मकथा करता ही रहता है, वह भी काथिक कहा जाता है। -भाष्य गा. 4353 / समय का ध्यान न रखते हुए धर्मकथा करते रहने से प्रतिलेखन प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, ध्यान आदि कार्य यथासमय नहीं किये जा सकते, जिससे संयमी जीवन अनेक दोषों से दूषित हो जाता है / समाचार पत्रों में और तत्सम्बन्धी विकथाओं में संयम का अमूल्य समय बिताने वाला भी काथिक है / वह आर्त-रौद्र ध्यान एवं कर्म बंध को प्राप्त करता रहता है और आत्मा का अहित करता है / अत: विकथाओं में समय बिताने वाला, आहारादि के लिए धर्मकथा करने वाला और सदा धर्मकथा ही करते रहने वाला ये तीनों ही काथिक कहे गये हैं। ७-पासणिय (प्रेक्षणिक) : जणवय ववहारेसु, णडणट्टादिसु वा जो पेक्खणं करेति सो पासणिओ। -चूर्णि / जनपद आदि में अनेक दर्शनीय स्थलों का या नाटक नत्य आदि का जो प्रेक्षण करता है वह संयम लक्ष्य तथा जिनाज्ञा की उपेक्षा करने से पासणिय प्रेक्षणिक कहा जाता है / ८-मामक :- ममीकार करेंतो मामओ। . आहार उवहि देहे, वीयार विहार वसहि कुल गामे / पडिसेह च ममत्तं, जो कुणति मामओ सो उ // 4359 // भावार्थ :- जो आहार में आसक्ति रखता है, संविभाग नहीं करता है, निमन्त्रण नहीं देता है, उपकरणों में अधिक ममत्व रखता है, किसी को अपनी उपधि के हाथ नहीं लगाने देता है, शरीर में ममत्व रखता है, कुछ भी कष्ट परीषह सहने की भावना न रखते हुए सुखैषी रहता है। स्वाध्याय स्थल व परिष्ठापन भूमि में भी अपना अलग स्वामित्व रखते हुए दूसरों को वहाँ बैठने का निषेध करता है। मकान में, सोने, बैठने या उपयोग में लेने के स्थानों में अपना स्वामित्व रखता है, दूसरों को उपयोग में नहीं लेने देता है। श्रावकों के ये घर या गाँव आदि मेरी सम्यक्त्व में है / इनमें कोई विहार नहीं कर सकता, अपना बना नहीं सकता
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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