________________ आगम निबंधमाला समझना चाहिए और इसका पालन न हो तो निशीथ, उद्दे.१९ अनुसार चौमासी प्रायश्चित्त लेना चाहिये / 8. पोरिसी आ जाने के बाद भी कालिक सूत्र की स्वाध्याय करे तो चौमासी प्रायश्चित्त / यथा- दीपावली के दिन उत्तराध्ययन की स्वाध्याय / -निशीथ-१९ / 9. आगम निर्दिष्ट क्रम के विपरीत वाचणी दे तो प्रायश्चित्त / -निशीथ-१९ / 10. प्रथम आचारांग सूत्र की वाचणी दिये बिना कोई भी आगम निर्दिष्ट सूत्र की वाचणी देवे तो प्रायश्चित्त / -निशीथ-१९ / 11. आचार्य उपाध्याय के वाचणी दिये बिना या आज्ञा दिये बिना कोई भी सूत्र पढ़े तो प्रायश्चित्त / निशीथ- 19 / 12. दस बोल युक्त भूमि हो वहीं परठना चाहिए / -उत्तरा. अ. 24 गा. 17-18 13. रास्ते चलता बातें नहीं करना / - आचारांग 2-3-2 14. चरे मंद मणुविग्गो, अवक्खित्तेण चेयसा / दशवै. 5, 1, 2 / उतावल से चलना, असमाधि स्थान है, -दशा.द.१ / समाज में उतावल से अर्थात् तेज चलने वाले प्रसंशा प्राप्त कर खुश होते है, यह अज्ञान दशा का परिणाम है / आगम में उसे पापीश्रमण कहा गया है। उतरा. अ.१७ गा. 8 / 15. थोड़ी सी भी कठोर भाषा बोलने का मासिक प्रायश्चित्त; निशीथ.२ / गहस्थ या साधु को कठोर वचन अथवा उसकी कोई भी प्रकार की आशातना करना लघु चौमासिक प्रायश्चित्त का कार्य है। निशीथ-१४ व. 13, / रत्नाधिकों को कठोर वचन कहे या कोई भी प्रकार की आशातना करे तो गुरु चौमासी प्रायश्चित्त- निशीथ- 10 / 16. दर्शनीय दष्यों को देखने व वादिंत्र आदि के स्थलों में सुनने के लिए जावे या मकान के बाहर आकर देखे तो लघुचौमासी प्रायश्चित्त। -निशीथ-१२ तथा 17 / 17. रोगातंक के समय आहार का त्याग करना चाहिए। -उत्तरा.अ. 26, गा. 34-35 / [59 /