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________________ आगम निबंधमाला (6) स्वाध्याय और ध्यान में लीन रहता है, वही सच्चा भिक्षु हैदशवै. 10 / भिक्षु निद्रा एवं बातों में ज्यादा रूचि न रखें तथा हंसी ठट्ठा न करे किन्तु सदा स्वाध्याय-अध्ययन आदि में रत(लगा) रहे। -दशवै.८, गा. 42 / (7) जो बहुत बड़ी तपस्याएँ करता है अथवा जो बहुश्रुत एवं विशाल ज्ञानी है फिर भी यदि वह गुस्सा, घमण्ड, माया-प्रपच ममत्व परिग्रह वत्ति करता है तो वह तीव्र कर्मों का बंध करता है एवं अनंत जन्म मरण बढ़ाता है / -दशवै.८ / - सूय.१ अ.२, उ.१, गा. 7,6 / (8) जो भिक्षु संयम लेने के बाद महाव्रतों का तीन करण तीन योग से शुद्ध पालन नहीं करता, समितियों के पालन में कोई भी विवेक या लगन नहीं रखता है, खाने में गद्ध बना रहता है, आत्म नियंत्रण नहीं करता है वह जिनाज्ञा में नहीं है, कर्मों से मुक्त नहीं हो सकता / वह चिरकाल तक संयम के कष्टों को झेलते हुए भी संसार से पार नहीं हो सकता / वह वास्तव में अनाथ ही है। -उत्तरा.अ.२०,गा.३६,४१ / (9) कंठ छेदन करने वाला अर्थात् प्राणांत कर देने वाला व्यक्ति भी अपना इतना नुकशानं नहीं कर सकता जितना कि गलत विचारों और गलत आचरणों में लगी हुई अपनी आत्मा ही अपना नुकशान करती है। -उत्तरा. अ.२०, गा. 48 / / (10) सदा सोते समय और उठते समय अपने अवगुणों का, दोषों का चिंतन कर-कर के छांट-छांट के उन्हें निकालते रहना चाहिए और शक्ति का विकाश एवं उत्साह की वद्धि कर संयम गुणों में पुरुषार्थ करना चाहिए / इस प्रकार आत्म सुरक्षा करने वाला ही लोक में प्रतिबुद्धजीवी है और वह जन्म-मरण के चक्कर में नहीं भटकता / -दशवै. चू. 2, गा. 12 से 16 / जो गुणों से सम्पन्न होकर आत्म गवेषक होता है वह भिक्षु है / -उत्तरा. अ.१५, गा. 15 / निबंध-९ साध्वाचार के आवश्यक आगम निर्देश 18 पाप त्याग, 5 महाव्रत पालन, 5 समिति पालन, 52 अनाचार वर्जन आदि अनेक आचार निर्देश प्रसिद्ध है। फिर भी इनस / 57 /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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