________________ आगम निबंधमाला . . में बाधा नहीं आती है / यथा- अनजान से दोष युक्त आहार पानी खाने-पीने में आ गया हो, रास्ते में वर्षा आ गई हो, दोष लगाने वाले की सेवा की हो या उससे सम्बन्ध रखा गया हो, इत्यादि कुछ अनजानता और परिस्थितियों के दोष नगण्य हो जाते हैं और वहाँ यह नियंठा रह भी सकता है। उसके सिवाय अपने-अपने दर्ज के दोष से बकुश अथवा प्रतिसेवना नियंठा या असंयम आ जाता है / इस नियंठे के भी पाँच प्रकार, निमित की अपेक्षा से कहे गये हैं, यथा- ... 1. ज्ञान कषाय कुशील- ज्ञान सीखने में, सीखाने में, प्रेरणा या प्रचार करने आदि किसी भी प्रसंग से संज्वलन के उदय से प्रमत्त दशा में प्रकट रूप से संज्वलन की कषाय अवस्था आ जाय वह ज्ञान कषाय कुशील कहलाता है। 2. दर्शन कषाय कुशील- दर्शन श्रद्धा के विषयों को समझाने समझने व शुद्ध श्रद्धा के प्रेरणा प्ररूपणा में, किसी प्रसंग में संज्वलन के उदय से, प्रमत्त दशा में, प्रकट रूप से संज्वलन की कषाय अवस्था आ जाय, वह दर्शन कषाय कुशील कहलाता है / 3. चारित्र कषाय कुशील- चरित्र की प्रवत्ति या सेवा कार्य करने में, कराने में इत्यादि चरित्र विधि के नियमों के निमित से, किसी प्रसंग में, संज्वलन के उदय से, प्रमत्त दशा में, प्रकट रूप से संज्वलन कषाय की अवस्था आ जाय, वह चारित्र कषाय कुशील कहलाता है / 4. लिंग कषाय कुशील- शुद्ध लिंग वेश भूषा से खुद रहने में, दूसरों को रखने में इत्यादि लिंग के सम्बन्ध में या उसके उपकरणों के सम्बन्ध में, किसी प्रसंग से, संज्वलन के उदय से, प्रमत्त दशा में, प्रगट रूप से संज्वलन कषाय की अवस्था आ जाय, वह लिंग कषाय कुशील कहलाता है / 5. यथासूक्ष्म कषाय कुशील- परिशेष विषय की अपेक्षा से शास्त्रकार यह पाँचवाँ भेद करते हैं / अत: जिनका समावेश चार भेद में नहीं हो सकता वे इस भेद में ग्रहित हो जाते हैं / तदनुसार जिनको किसी भी निमित से, प्रकट कषाय दशा न हो, केवल उदय मात्र से अप्रकट कषाय होने से छठे प्रमत्त गुणस्थान वाले और 7-8-9-10 वे - -