________________ आगम निबंधमाला आदि ये चारों कषाय जन्म मरण की जड को सींचने वाले हैं / मूलाउ खंधप्पभवो दुमस्स, खंधा हु पच्छा समुविति साहा। साहप्पसाहा विरुहति पत्ता, तओ सि पुष्पं च फलं रसो य // एवं धम्मस्स विणओ, मूलं परमो से मुक्खो / जेण कित्तिं सुयं सिग्घं, णीसेसं चाभिगच्छइ ॥अ.९, उ.२,गाथा-१,२॥ अर्थ- जैसे वक्ष के मूल से स्कंध की उत्पत्ति होती है, स्कंध से शाखाएँ, शाखाओं से प्रशाखाए, और प्रशाखाओं से पत्ते उत्पन्न होते हैं इसके अनन्तर उस वृक्ष में फूल, फल और फल में रस आता है। इसी प्रकार धर्म का मूल विनय है एवं उसका परम फल मोक्ष है / विनय गुण से ही कीर्ति श्रुत श्लाघा आदि संपूर्ण गुणों की उपलब्धि होती है। णाण मेगग्गचित्तो य, ठिओ य ठावई परं / सुयाणिय अहिज्जित्ता, रओ सुयसमाहिए ॥अध्य.९, उद्दे, ४,गाथा-३॥ अर्थ- श्रुत समाधि के 4 प्रकार है- आचारांग आदि का श्रुत ज्ञान प्राप्त होगा इसलिए अध्ययन करना, एकाग्रचितं वाला होऊँगा, शास्त्र अध्ययन कर समझ कर आत्मा को मोक्ष मार्ग में लगाऊँगा, स्वयं स्थिर रहकर दूसरों को स्थिर करूंगा। नो इह लोगट्ठयाए तवमहिट्ठिज्जा / नो पर लोगट्ठयाए तवमहिट्ठिज्जा, णो कित्तिवण्णससिलोगट्ठयाए तवमहिट्ठिज्जा। णण्णत्थ णिज्जरट्टयाए तवमहिट्टिज्जा॥ अर्थ- तप समाधि के 4 भेद - इहलोक सम्बन्धी लब्धि की इच्छा से तप न करे, परलोक स्वर्ग आदि कामनाओं से तप न करे, यश आदि की वाँच्छा से तप न करे, केवल कर्मो की निर्जरा के अभिप्राय से तप करे / इस तरह ज्ञान, दर्शन, चारित्र का भी कर्म निर्जरा के लिये आसेवन करे / निबंध- 63 सुभाषित संग्रह : सूयगडांग सूत्र . बुज्जेज्जत्ति तिउट्टेज्जा, बंधणं परिजाणिया। किमाह बंधण वीरो, किंवा जाणं तिउट्टेइ ? ॥अध्य.१,उद्दे.१,गाथा-१॥ 232