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________________ आगम निबंधमाला से सुयं च मे अज्झत्थियं च मे "बंध पमोक्खो अज्झथेव" / -अध्य.५, उद्दे.२ // मैने सुना है, मैने अनुभव किया है - बंध और मोक्ष आत्मा अध्यवसों से ही होता है / इमेणं चेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ? -अध्य.५, उद्दे.३ // इस (कर्म शरीर) के साथ ही युद्ध कर, दूसरों के साथ युद्ध करने से तुझे क्या लाभ ? जुद्धारिहं खलु दुल्लह ।-अध्य.५, उद्दे.३ // युद्ध के योग्य सामग्री मनुष्यत्व आदि निश्चित ही दुर्लभ है। ... तुमंसि नाम सच्चेव जं हंतव्वं त्ति मण्णसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं अज्जावेयव्वं त्ति मण्णसि, तुम सि नाम सच्चेव जं परितावेयव्वं त्ति मण्णसि, तुमसि नाम सच्चेव जं परिघेतव्वं ति मण्णसि, तुमसि नाम सच्चेव जं उद्दवेयव्वं त्ति मण्णसि / -अध्य.५, उद्दे.५ // जिसे तू हनन योग्य मानता है, वह तू ही है तो ? जिसे तू आज्ञा में रखने योग्य मानता है, वह तू ही है तो? जिसे तू परिताप देन योग्य मानता है वह तू ही है तो ? जिसे तू दास बनाने योग्य मानता है, वह तू ही है तो? जिसे तू मारने योग्य मानता है वह तू ही है तो? ज्ञानी हन्तव्य और घातक की एकता को समझ कर जीता है, न हनन करता है न करवाता है / अपना किया कर्म अपने को ही भुगतना पड़ता है इसलिए हनन की इच्छा मत करो / जे आया से विण्णाया, जे विण्णाया से आया / जेण विजाणति से आया ।-अध्य.५, उद्दे.५ // जो आत्मा है वह ज्ञाता है, जो ज्ञाता है वही आत्मा है, क्यों कि जानने के लक्षण वाला ही आत्मा होता है / जानता है इसलिए आत्मा है। जीवियं णाभिकखज्जा, मरणं णोवि पत्थए / दुहतोवि ण सज्जेज्जा, जीविए मरणे तहा। -अध्य.८, उद्दे०८ // अर्थ- मोक्षार्थी साधक जीवन की आकांक्षा न करे, मरण की इच्छा न करे, जीवन मरण दोनों में आसक्त न बने अर्थात् जीवन मरण म सम परिणामी होकर वर्तमान भाव में ही शुभ परिणाम रखे / 226 - m e romemas
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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