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________________ आगम निबंधमाला अर्थ- यह. ब्रह्मचर्य धर्म ध्रुव, नित्य, शास्वत और अर्हत द्वारा उपदिष्ट है, इसका पालन कर अनेक जीव सिद्ध हुए हैं, हो रहे हैं, और भविष्य में होंगे। लाभा लाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा। समो निन्दा पसंसासु, तहा माणावमाणओ // [अध्य.१९,गाथा-६०] अर्थ- लाभ अलाभ, जीवन मरण, सुख दुख, निन्दा प्रशंसा, मान अपमान, में सदा सम परिणामी रहने वाले सफल साधक होते हैं / अणिस्सिओ इह लोए, पर लोए अणिस्सिओ / वासी चंदणकप्पो य, असणे अणसणे तहा // [अध्य.१९,गाथा-६१] अर्थ- इस लोक और परलोक में अनासक्त, वसूले से काटने या चंदन लगाने पर तथा आहार मिलने या न मिलने पर सम रहने वाले मनि सफल साधक होते हैं अर्थात् वे चंदन वक्ष के समान स्वभाव वाले होते हैं / चंदन काटने वाले को एवं पूजने वाले को दोनों को सुगंध ही देता है, समान व्यवहार रखता है वैसे ही श्रमण भी सम परिणाम एवं व्यवहार ही सदा रखता है / अप्पा णई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली / अप्पा काम दुहा धेणु, अप्पा मे णदण वण // [अध्य.२०,गाथा-३६] अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य / अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठिय सुपट्ठिओ // [अध्य.२०,गाथा-३७] अर्थ- आत्मा ही वेतरणी नदी है, और आत्मा ही कूट शाल्मलीवृक्ष है, आत्मा ही कामदुधा धेनु है, और आत्मा ही नंदनवन है / आत्मा ही दुःख सुख को पैदा करने वाली और उनका क्षय करने वाली है, सत्यवत्ति में लगी आत्मा ही मित्र है और दुष्प्रवत्ति में लगी आत्मा ही शत्रु है / जइ तं काहिसि भावं, जा जा दिच्छसि नारिओ। वाया विद्धो व्व हड़ो, अट्ठि अप्पा भविस्सइ // [अध्य.२२,गाथा-४४] अर्थ- यदि तूं जो कोई स्त्रियों को देखकर इस प्रकार राग भाव करेगा, तो वायु से आहत हड वृक्ष की तरह सदा अस्थिरात्मा हो जायेगा / |219
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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