________________ आगम निबंधमाला होता है, मर्यादा भंग आदि से कर्मबन्ध होता है, कभी अपयश भी होता है, इसलिए संयम विराधना की एवं प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। -निशीथ चूर्णि उद्दे०-१९, सूत्र-१४, - अभि. रा. को. भा.-१, पृ. 827. अतः स्वाध्याय प्रिय भिक्षु को इन 32 अस्वाध्यायों के सम्बन्ध में सदा सावधानी रखनी चाहिए। नोंध :- भादवा की पूनम एवं आसोज की एकम की भी अस्वाध्याय मानने की परंपरा है। जो लिपि दोष आदि से बनी भ्रमित परंपरा है जिससे 32 + 2 = 34 अस्वाध्याय कही जाती है। निबंध- 52 अनुकम्पा में दोष संबंधी विवेक ज्ञान (निशीथ सूत्र, उद्देशक-१२, सूत्र-१-२) कोलुण शब्द का अर्थ करुणा होता है / यथा- कोलुणं-कारुणं, अनुकम्पा / -चूर्णी बंधा हुआ पशु बंधन से मुक्त होने के लिए छटपटा रहा हो, उसे बंधन से मुक्त कर देना अथवा सुरक्षा के लिये खुले पशु को नियत स्थान पर बाँध देना यह पशु के प्रति करूणा भाव है। - पशु को बाँधने पर वह बंधन से पीड़ित हो या आकुल-व्याकुल हो तो तज्जन्य हिंसा दोष लगता है। खोलने पर कुछ हानि कर दे, निकलकर कहीं गुम जाये या जंगल में चला जाये और वहाँ कोई दूसरा पशु उसे खा जाये या मार डाले तो भी दोष लगता है। यद्यपि पशु आदि के खोलने-बाँधने आदि के कार्य संयम समाचारी से विहित नहीं है। ये कार्य भी गृहस्थ के कार्य ही हैं। इसलिए उसका प्रायश्चित्त गृहस्थ कार्य करने के प्रायश्चित्त के बराबर आना चाहिए अर्थात् गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आना चाहिए / किन्तु अनुकम्पा भाव की मुख्यता होने से इसका गुरु प्रायश्चित्त न कहकर लघु प्रायश्चित्त कहा गया है। अनुकम्पा भाव का सहज आ जाना यह सम्यक्त्व का मुख्य लक्षण है, फिर भी भिक्षु ऐस अनेक गृहस्थ, जीवन के कार्यों में न उलझ जाये इसलिय उसके संयम जीवन की अनेक मर्यादाएँ है / भिक्षु के [197