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________________ आगम निबंधमाला भोजन करने के बाद पात्र धोकर पानी पीने का आचार भी वैज्ञानिक है / ऐसा करने पर दांत स्वतः पानी से धुल जाते हैं और थूकने फेंकने की प्रवत्ति साधु जीवन में नहीं बढती है / दंत रोग की आशंका से शंकित भिक्षुओं को मंजन करने की अपेक्षा निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए- (1) कम खाना, कम बार खाना और कम वस्तु खाना / मन के कहे न खाना, तन मांगे वह खाना / (2) खाने के तुरन्त बाद या कुछ समय बाद दांतों में पानी को हिलाते हुए एक दो बूंट पानी पीना चाहिए / (3) जब भी पानी पीया जाय अंत में पानी को दांतों में हिलाकर निगलना चाहिए / (4) महिने में 2 या 4 उपवास आदि अवश्य करने चाहिए / (5) अरुचि हो या वायुनिसर्ग दुर्गन्धं युक्त हो तो भोजन छोड देना चाहिए / (6) दस्ते या उल्टिएं हो तो भोजन छोड देना चाहिए / इस प्रकार श्रद्धा और विवेक रखा जाय तो अदंत धावन (मजन नहीं करने के) नियम का पालन करते हुए भी स्वस्थ रहा जा सकता है और ऐसा करने से ही सर्वज्ञों के आज्ञा की श्रद्धा एवं आराधना शुद्ध हो सकती है / - स्नान नहीं करने आदि नियमों में भी अहिंसा, ब्रह्मचर्य, इन्द्रिय निग्रह, आत्म लक्ष्य, शरीर अलक्ष्य आदि हेतु है / साथ ही निर्वस्त्र, अल्प वस्त्र, ढीले वस्त्र पहनने का भी इससे सम्बन्ध है / विहार यात्रा, परिश्रमी एवं स्वावलंबी जीवन, अप्रमत्त चर्या आदि भी इसमें सम्बन्धित है / संयम के अन्य आवश्यक नियमों का ध्यान रखा जाय तो अस्नान एवं अदंत धावन नियम शरीर के स्वस्थ रहने में तनिक भी बाधक नहीं बन सकते / . तात्पर्य यह है कि शरीर परिचर्या के निषेध करने वाले आगम नियमों का पालन करना हो तो खान-पान एवं जीवन व्यवहार के आगम विधानों का और व्यवहारिक विवेकों का पालन करना भी अत्यावश्यक समझना चाहिये तभी शरीर स्वास्थ्य एवं संयम शुद्धि तथा चित्त समाधि कायम रह सकती है। साथ ही अपनी क्षमता का खयाल रखने से सुन्दर आराधना हो सकती है / | 179 /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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