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________________ आगम निबंधमाला इसलिए धर्मी पुरुषों को एवं विशेषकर साधु साध्वियों को रात्रि भोजन का पूर्णत: त्याग करना चाहिए / परिस्थितिवश श्रावक हीनाधिक रूप में भी इसका अभ्यास करते हुए पूर्ण त्याग का लक्ष्य रखता है / अंत में एक स्टेज में उसे भी रात्रि भोजन त्याग करना आवश्यक हो जाता है / अत: गह त्यागी को पूर्णतया और गहस्थ को यथाशक्ति रात्रि भोजन का त्याग करके शरीर स्वास्थ्य लाभ एवं आत्मोन्नति लाभ प्राप्त करना चाहिए / निबंध- 46 दत मंजन का व्यवहार एवं आगम निष्ठा संयम पालन करने के लिए शरीर का निरोग होना नीतान्त आवश्यक है / क्यों कि संयम जीवन में शरीर का रोगग्रस्त होना छिद्रों वाली नावा से समुद्र पार करने के समान है / उत्तराध्ययन सूत्र के 23 वे अध्ययन में शरीर को नावा कहा है और जीव को नाविक कहा है / छिद्रों रहित नौका को संसार समुद्र पार करने के योग्य कहा है। शरीर रूपी नौका का सछिद्र होने का तात्पर्य है- उसका रोग ग्रस्त होना / .. मंजन करना स्वस्थ रहने का प्रमुख अंग माना जाता है / कहा भी है आँख में अंजन, दांत में मंजन, नित कर, नित कर, नित कर / दशवैकालिक सूत्र के तीसरे अध्ययन में मंजन करना, दांत धोना साधु के लिए अनाचरणीय कहा है। अन्यत्र भी अनेक आगमों में मंजन नहीं करने को संयम के महत्त्व शील नियम रूप में सूचित किया गया है। यथा- जिस हेतु से साधक ने नग्नभाव यावत् अदंतधावन(दांत साफ नहीं करने की प्रतिज्ञा) को स्वीकार किया था उस हेतु को पूर्ण सिद्ध करके मोक्ष प्राप्त किया। . वर्तमान काल की खान-पान पद्धति एवं अशुद्ध खाद्य पदार्थों की उपलब्धि के कारण दंत रोग पायरिया, आदि की बिमारियाँ शीघ्र हो जाती है / ऐसी परिस्थिति में स्वास्थ्य की सुरक्षा हेतु कई संत सतियों ने दंत मंजन को आवश्यक समझ लिया है। 177
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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