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________________ आगम निबंधमाला महिने में दो बार और वर्ष में नव बार की ही छूट है जिसका केवल कल्प मर्यादा पालने हेतु नदी पार करने से सम्बन्ध है / इसके सिवाय प्रवचन प्रभावना के लिए पाद विहारी भिक्षु को वाहनों के प्रयोग का संकल्प करना भी संयम जीवन में अनुचित्त है। अन्य वाहन का उपयोग- उत्सर्ग विधानों के अनुसार संयम साधना करने वाले भिक्षु को पाद विहार ही प्रशस्त है और अपवाद विधानों के अनुसार परिमित जल मार्ग को नौका द्वारा पार करने का आगम में विधान है अन्य वाहनों के उपयोग करने का निषेध प्रश्नव्याकरण श्रु. 2, अ. 5 में है वहाँ हाथी, घोड़े, वाहन, रथ आदि यान तथा डोली, पालकी आदि का भी निषेध है। विशेष परिस्थिति में इनके आपवादिक उपयोग का निर्णय गीतार्थ की निश्रा से विवेक पूर्वक करना चाहिए। यान-वाहन उपयोग करने के कारण अकारण का स्पष्टीकरण भी नावा प्रयोग के लिए कहे गये कारणों के समान समझ लेना / चाहिए। कल्प मर्यादा का कारण इनमें नहीं होता है। जीव विराधना की तुलना- विशेष कारण होने पर नौका द्वारा जल मार्ग पार करने में अप्कायिक जीवों की विराधना अधिक होती है और अन्यकायिक जीवों की विराधना अल्प होती है। सकारण अन्य वाहनों के उपयोग में वायुकायिक जीवों की विराधना अधिक तथा तेजस्कायिक जीवों की विराधना अल्प एवं शेषकायिक जीवों की विराधना और भी अल्प होती है। इन जीव विराधनाओं का निशीथ सूत्र, उद्देशक-१२, सूत्र-८ के अनुसार प्रायश्चित्त आता है। अपवाद का निर्णय एवं प्रायश्चित्त- अपवादों के सेवन का उसके सेवन की सीमा का और प्रायश्चित्त का निर्धारण तो गीतार्थ ही करते हैं। आगमोक्त एवं व्याख्या में कहे अपवादों के अतिरिक्त यानों का उपयोग करना अकारण उपयोग माना जाता है अतः उनके अकारण उपयोग का प्रायश्चित्त यहाँ प्रथम सूत्र के अनुसार समझना चाहिए एव सकारण वाहन उपयोग का प्रायश्चित्त नहीं आता है। यह भी इस प्रथम सूत्र से स्पष्ट होता है। किन्तु गवेषणा, विराधना आदि दोषों का प्रायश्चित्त सकारण या अकारण दोनों प्रकार के वाहन प्रयोग में | 164 -
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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