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________________ आगम निबंधमाला (3) कल्प्याकल्प्य उपाश्रय- (1) बड़े-बड़े संघों में अपने आयोजनों प्रयोजनों को लेकर नये मकान का निर्माण करवाया जाता है, साथ ही में संत-सतियों की अनुकूलता को भी लक्ष्य में रखा जाता है। (2) साधु-साध्वियों के लिये मकान खरीद लिया जाता है। (3) गृहस्थों एवं साधु-साध्वियों के संयुक्त उपयोग के लिये भी कहीं-कहीं मकान खरीद लिया जाता है। (4) निर्दोष मकान में भी साधु-साध्वियों के उद्देश्य से कई प्रकार के सुधार करवाये जाते हैं। (5) चातुर्मास के अवसर पर श्रोताओं की सुविधा के लिये, संघ की शोभा के लिये अंथवा साधुओं के आवश्यक उपयोगों के निमित्त कुछ सुधार करवाये जाते है। (6) साधु-साध्वियों के उद्देश्य से सचित्त पदार्थ या अधिक वजन वाले अचित्त उपकरण स्थानान्तरित किये जाते हैं अथवा मकान की सफाई कर दी जाती है। इन मकानों में सूक्ष्म उद्देश्य या अल्प आरंभ अथवा परिकर्म कार्य होने से ये गृहस्थों के उपयोग में आने के बाद या कालान्तर से कल्पनीय हो जाते हैं। . . आचा. श्रु.-२, अ.-५ एवं 6 में साधु के लिये खरीदे गये वस्त्रपात्र को गृहस्थ के उपयोग में आने के बाद या कालान्तर से कल्पनीय कहा गया है और अ.-२, उ.-१ में साधु के लिये किये गये अनेक प्रकार के आरंभ एवं परिकर्म युक्त मकान भी गृहस्थ के उपयोग में आने के बाद कल्पनीय कहे हैं, इत्यादि आगम प्रमाणों के आधार से ही यहाँ उक्त मकानों को कालान्तर से कल्पनीयं होना बताया गया है / सार-(१) जिन मकानों के निर्माण एवं परिकर्म में साधु-साध्वी का कोई भी निमित्त नहीं है, वे पूर्ण कल्पनीय होते हैं। (2) जिन मकानों के निर्माण का मुख्य उद्देश्य साधु-साध्वी का होता है, वे पूर्ण अकल्पनीय होते हैं। (3) जिन मकानों के निर्माण में साधु-साध्वियों का मुख्य लक्ष्य न होकर उनकी अनुकूलताओं का लक्ष्य रखा गया हो या उनके निमित्त सामान्य या विशेष परिकर्म(सुधार) आदि किये गये हो तो वे मकान अकल्पनीय होते हुए भी कालान्तर से या गृहस्थ के उपयोग में आ जाने से कल्पनीय हो जाते हैं / -आचा. श्रु.-२, अ.-२, उ.-१ / [156] - -
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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