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________________ आगम निबंधमाला आदि तप करना आवश्यक नहीं होता है, स्वाभाविक ही प्रायः सदा उणोदरी तप हो जाता है / बृहत्कल्प उ.५ में साध्वी को अकेले गोचरी जाने का भी निषेध किया है। अतः इन प्रतिमाओं में स्वतन्त्र गोचरी लाने वाली साध्वी के साथ अन्य साध्वियों को रहना आवश्यक है, किन्तु गोचरी तो वह स्वयं ही अपनी अकेली की करती है। इन प्रतिमाओं को भी सूत्र में 'भिक्षु प्रतिमा' शब्द से ही सूचित किया गया है। फिर भी इनको धारण करने में बारह भिक्षु प्रतिमाओं के समान विशिष्ट योग्यता की आवश्यकता नहीं होती है। जब साध्वी भी गच्छ में रहते हुए स्वतन्त्र गोचरी एवं अभिग्रह आदि कर सकती है तब गच्छ में रहते हुए साधुओं का स्वतन्त्र गोचरी एवं अभिग्रह आदि करना स्वतः सिद्ध हो जाता है / अनेक आगमों में साधुओं के स्वतन्त्र गोचरी जाने के वर्णन भी मिलते हैं। अतः आज्ञा पूर्वक स्वतन्त्र गोचरी करना दूषण नहीं है अपितु विशिष्ट संयम उन्नति का गुण ही है, ऐसा समझना चाहिए। आजकल अलग गोचरी को एकांत अवगुण की दृष्टि से देखा जाता है वह उचित नहीं है / निबंध- 37 पारिवारिक घरों में गोचरी गमन विवेक ___व्यवहार सूत्र, उद्देशक-६, सूत्र-१ में यह बताया गया है कि पारिवारिक लोगों के घर में गोचरी के लिए प्रवेश करने के बाद कोई भी खाद्य-पदार्थ स्वाभाविक निष्पादित हो या चूल्हे पर से चावलदाल या रोटी, दूध आदि कोई भी खाद्य पदार्थ स्वाभाविक हटाया जाए तो उसे नहीं लेना चाहिए। उस पदार्थ के हटाने में साधु का निमत्त हो या न हो, ज्ञात कुल में ऐसे पदार्थ अगाह्य हैं / वहाँ घर में प्रवेश करने के पहले ही जो पदार्थ निष्पन्न हो या चूल्हे पर से उतरा हुआ हो वही लेना चाहिए / अपरिचित या अल्पपरिचित घरों में उक्त पदार्थ लेने का सूत्र में निषेध नहीं है। इसका कारण यह है कि अनुरागी ज्ञातिजन आदि भक्तिवश कभी साधु के निमित्त भी यह प्रवृत्ति कर सकते हैं जिससे [153 /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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