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________________ आगम निबंधमाला लघुपंचकादर्वाग् गुरुभ्यः षण्मासेभ्यः ऊर्ध्व छेदो न भवतीत्यावेदितं द्रष्टव्यम् (707) / भावार्थ :- तप और छेद दोनों प्रायश्चित्त के स्थान समान है। इन दोनों प्रायश्चित्त में पाँच दिन की वृद्धि करते हुए उत्कृष्ट 6 महिने का तप और छेद प्रायश्चित्त होता है इसलिये 6 महीने से आगे छेद (दीक्षा कट का) प्रायश्चित्त नहीं होता है ऐसा बताया गया है, दिखाया गया है। (707). दुविहो य होइ छेदो, देसच्छेदो य सव्वछेदो य / मूलाणवठ्ठप्प चरिमा, सव्वच्छेओ अतो सत्त // 10 // इह च्छेदो द्विविधो भवति- देशच्छेदश्च सर्वचछेदश्च। पंचकादिकः षण्मासपर्यन्तो देशच्छेदः / मूलक-अनवस्थाप्य-पारांचिकानि पुनर्देशोनपूर्वकोटिप्रमाणस्यापि पर्यायस्य युगपत् छेदकत्वात् सर्वच्छेदः। एष द्विविधोपि सामान्यतश्छेदशब्देन ग्रह्यते इति विवक्षया सप्तविधं प्रायश्चित्तम् (710). भावार्थ :- अपेक्षा से प्रायश्चित्त के सात प्रकार कहे गये हैं। सातवाँ छेद प्रायश्चित्त है उसका दो भेद है- (1) देश छेद (2) सर्व छेद / पहला देश छेद प्रायश्चित्त पाँच दिन से लेकर उत्कृष्ट 6 महीने का होता है और सर्व छेद प्रायश्चित्त के तीन प्रकार है- (1) मूल(नई दीक्षा) प्रायश्चित्त (2) अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त (3) पारंचिक प्रायश्चित्त / इन तीनों प्रायश्चित में एक बार में ही सम्पूर्ण दीक्षा पर्याय का छेदन हो जाता है।-बृहत्कल्प भाष्य पीठिका / सार :- 6 महीने से अधिक दीक्षा छेद का प्रायश्चित्त नहीं होता है। इसक आगे नई दीक्षा देने रूप मूल प्रायश्चित्त ही होता है किन्तु 8 मास, 10 मास या वर्ष दो वर्ष यावत् दस वर्ष का दीक्षा छेद का प्रायश्चित्त नहीं दिया जाता है। अतः एकल विहार या किसी भी अन्य दोष का 6 महीने से अधिक दीक्षा छेद प्रायश्चित्त देना अज्ञानदशा एवं अंधानुकरण है। एकल विहार का उत्कृष्ट गुरू चौमासी प्रायश्चित्त ही आता है। उसका उतने ही दिन का दीक्षा कट का प्रायश्चित्त देना भी भेड़ चाल मात्र है। जो किसी भी शास्त्र या उनकी प्राचीन व्याख्याओं से प्रमाणित नहीं किया जा सकता है। ऐसे आगम विपरीत प्रायश्चित्त
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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