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________________ आगम निबंधमाला संयम समाधि नष्ट होती है और क्लेशों की वृद्धि होती है। 4. अंततः गच्छ भी छिन्न-भिन्न होता रहता है। अतः प्रत्येक गच्छ में आचार्यउपाध्याय दोनों पदों पर किसी को नियुक्त करना आवश्यक है / यदि कोई आचार्य, उपाध्याय पदों को लेना या गच्छ में ये पद नियुक्त करना अभिमान सूचक एवं क्लेश वृद्धि कराने वाला मानकर सदा के लिए पदरहित गच्छ रखने का आग्रह रखते हैं और ऐसा करते हुए अपने को निरभिमानी होना व्यक्त करते हैं, तो ऐसा मानना एवं करना उनका सर्वथा अनुचित है और जिनाज्ञा की अवहेलना एवं आशातना करना भी है। क्यों कि जिनाज्ञा तो आचार्य, उपाध्याय नियुक्त करने की है तथा नमस्कारमंत्र में भी ये दो स्वतंत्र पद कहे गये हैं / अतः उपरोक्त आग्रह में सूत्र विधानों से भी अपनी समझ को सर्वोपरि मानने का अहं सिद्ध होता है। यदि आचार्य, उपाध्याय पद के अभाव में निरभिमान और क्लेशरहित होना सभी विशाल गच्छ वाले सोच लें तो नमस्कार मंत्र के दो पदों का होना ही निरर्थक सिद्ध होगा और जिससे पद नियुक्ति सम्बन्धी इन सारे आगम विधानों का भी कोई महत्त्व नहीं रहेगा / इसलिये अपने विचारों का या परंपरा का आग्रह न रखते हुए सरलतापूर्वक आगम विधानों के अनुसार ही प्रवृत्ति करना चाहिए। सारांश :- (1) प्रत्येक नव-ड़हर-तरुण साधु को दो और साध्वी को तीन पदवीधर युक्त गच्छ में ही रहना चाहिए। (2) इन पदवीधरों से रहित गच्छ में नहीं रहना चाहिए। (3) सूत्रोक्त वय के पूर्व एकल विहार या गच्छ त्याग कर स्वतंत्र विचरण भी नहीं करना चाहिए। (4) सूत्रोक्त वय के पूर्व कोई परिस्थिति विशेष हो तो अन्य आचार्य एवं उपाध्याय से युक्त गच्छ की निश्रा लेकर विचरण करना चाहिए। . (5) गच्छ प्रमुखों को चाहिए कि वे अपने गच्छ को 2 या 3 पद से कभी भी रिक्त न रखें। नोट-इस निबंध के कारण रूप अनेक प्रश्न होते है / यथा- आचार्य उपाध्याय के बिना कोई साधु या गच्छ नहीं रह सकते है, ऐसा यहाँ सूत्र में स्पष्ट है तो कितने ही गच्छ वाले ऐसा क्यो चलाते है / अपवाद मार्ग से चलावे तो क्या अपवाद मार्ग हमेशा के लिये हो |133
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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