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________________ आगम निबंधमाला कि आचार्य के नेतृत्व से इनकी संयम-समाधि रहती है और उपाध्याय के नेतृत्व से इनका आगमानुसार व्यवस्थित अध्ययन होता है। दूसरे सूत्र में नव डहर एवं तरुण साध्वी के लिए भी यही विधान किया गया है। उन्हें भी आचार्य, उपाध्याय और प्रवर्तिनी इन तीन की निश्रा के बिना रहना नहीं कल्पता है / इस सूत्र में भी प्रश्न करके उत्तर में यही कहा गया है कि ये उक्त वय वाली साध्वियाँ सदा तीन की निश्रा से ही सुरक्षित रहती है। सूत्र में निग्गंथस्स नव-ड़हर-तरुणगस्स और णिग्गंथीए णवड़हर-तरुणीए इस प्रकार एक वचन का प्रयोग है, यहाँ बहुवचन का या गण का कथन नहीं है जिससे यह विधान प्रत्येक 'नवड़हर तरुण' भिक्षु के लिए समझना चाहिए अतः जिस गच्छ में आचार्य और उपाध्याय दो पदवीधर नहीं हैं वहाँ उक्त नव-ड़हर-तरुण साधुओं को रहना नहीं कल्पता है और इन दो के अतिरिक्त प्रवर्तिनी न हो तो वहाँ उक्त नवडहर-तरुण साध्वियों को रहना नहीं कल्पता है / तात्पर्य यह है कि उक्त वय वाले साधुओं से युक्त गच्छ में आचार्य, उपाध्याय दो पदवीधर होना आवश्यक है। यदि ऐसे गच्छ में केवल एक पदवीधर स्थापित करे या एक भी पदवीधर नियुक्त न करे केवल रत्नाधिक की निश्रा से रहे तो इस प्रकार से रहना आगम विपरीत है। क्यों कि इन सूत्रों से यह स्पष्ट है कि अल्पसंख्यक गच्छ में प्रवर्तक एवं विशाल गच्छ में आचार्य और उपाध्याय का होना आवश्यक है यही जिनाज्ञा है। यदि किसी गच्छ में 2-4 साधु ही हों और उनमें कोई सूत्रोक्त नव-डहर-तरुण न हो अर्थात् सभी प्रौढ़ एवं स्थविर हों तो वे बिना आचार्य, उपाध्याय के विचरण कर सकते हैं किन्तु यदि उनमें नवड़हर-तरुण हो तो उन्हें किसी भी गच्छ के आचार्य, उपाध्याय की निश्रा लेकर अथवा अपना प्रवर्तक आदि स्थापित करके ही रहना चाहिए अन्यथा उनका विहार आगम विरुद्ध विहार है। इसी प्रकार साध्वियाँ भी 5-10 हों, जिनके कोई आचार्य, उपाध्याय या प्रवर्तिनी न हो या उन्होंने किसी परिस्थिति से गच्छ का त्याग कर दिया हो और उनमें नव डहर तरुण साध्वियाँ हों तो उन्हें भी किसी आचार्य और उपाध्याय 131 /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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