________________ आगम निबंधमाला (5) संग्रहकुशल :- द्रव्य से उपधि शिष्यादि का और भाव से श्रुत एवं अर्थ तथा गुणों का आत्मा में संग्रह करने में जो कुशल(दक्ष) होता है तथा क्षेत्र एवं काल के अनुसार विवेक रख कर ग्लान, वृद्ध आदि की अनुकम्पा पूर्वक वैयावृत्य करने की स्मति रखने वाला, आचार्यादि की रुग्णावस्था के समय वाचना देने वाला, समाचारी भंग करने वाले या कषाय में प्रवृत्त होने वाले भिक्षुओं को यथायोग्य अनुशासन करके रोकने वाला, आहार, विनय आदि के द्वारा गुरुभक्ति करने वाला, गण के अंतरंग कार्यों को करने वाला या गण से बहिर्भाव वालों को अंतर्भावी बनाने वाला, आहार उपधि आदि जिसको जो आवश्यक हो उसकी पूर्ति करने वाला, परस्पर साथ रहने में एवं अन्य को रखने में कुशल, सीवन, लेपन आदि कार्य करने कराने में कुशल, इस प्रकार निःस्वार्थ सहयोग देने के स्वभाव वाला गुणनिधि भिक्षु 'संग्रह कुशल है। .. (6) उपग्रह-कुशल :- बाल, वृद्ध, रोगी, तपस्वी, असमर्थ भिक्षु आदि को शय्या, आसन, उपधि, आहार, औषधं आदि देता है, दिलवाता है तथा इनकी स्वयं सेवा करता है अन्य से करवाता है। गुरु आदि के द्वारा दी वस्तु या कही वार्ता साधुओं तक पहुँचाता है तथा अन्य भी उनके द्वारा निर्दिष्ट कार्यों को कर देता है अथवा जिनके आचार्यादि नहीं है उन्हें आत्मीयता से दिशा निर्देश करता है, वह 'उपग्रह कुशल' है। (7) अक्षतआचार :- आधाकर्म आदि दोषों से रहित शुद्ध आहार ग्रहण करने वाला एवं परिपूर्ण आचार का पालन करने वाला। (8) अभिन्नाचार :- किसी प्रकार के अतिचारों का सेवन न करके पाँचों आचारों का परिपूर्ण पालन करने वाला। (9) असबलाचार :- विनय व्यवहार, भाषा, गोचरी आदि में दोष नहीं लगाने वाला अथवा सबल दोषों से रहित आचरण वाला। (10) असंक्लिष्ट आचार :- इहलोक-परलोक सम्बन्धी सुखों की कामना न करने वाला अथवा क्रोधादि का त्याग करने वाला संक्लिष्ट परिणाम रहित भिक्षु। 'क्षत आचार' आदि शब्दों का अर्थ इससे विपरीत समझ लेना चाहिए / यथा- (1) आधाकादि का सेवन करने वाला। (2) अतिचारों का सेवन कर पाँच आचार या पाँच महाव्रत में दोष [128 E -M H - - -