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________________ आगम निबंधमाला है तथापि व्यवस्था तथा कार्य संचालन का उत्तरदायित्व गणावच्छेदक का अधिक होने से इनकी दीक्षा पर्याय कम से कम आठ वर्ष की होना आवश्यक कहा है। अन्य गुण :- आचार कुशलता आदि दस गुणों का कथन इन सूत्रों में सभी पदवी वालों के लिये किया गया है उन्हें समझना जरूरी है। उनकी व्याख्या भाष्य में इस प्रकार की गई है(१) आचारकुशल :- ज्ञानाचार में एवं विनयाचार में जो कुशल होता है वह आचारकुशल कहा जाता है। यथा- गुरु आदि के आने पर खड़ा होता है उन्हें आसन चौकी आदि प्रदान करता है, प्रातः काल उन्हें वंदन करके आदेश मांगता है, द्रव्य से अथवा भाव से उनके निकट रहता है, शिष्यों को एवं प्रतीच्छको(अन्य गच्छ से अध्ययन के लिए आये हुओं) को गुरु के प्रति श्रद्धान्वित करने वाला, कायिकी आदि चार प्रकार की विनयप्रतिपत्ति को यथाविधि करने वाला, आवश्यक वस्त्रादि प्राप्त करने वाला, गुरु आदि की यथायोग्य पूजा, भक्ति, आदर-सत्कार करके उन्हें प्रसन्न रखने वाला, परुष वचन नहीं बोलने वाला, अमायावी-सरल स्वभावी, हाथ-पाँव-मुख आदि की विकृत चेष्टा से रहित स्थित स्वभाव वाला, दूसरों के साथ मायावी आचरण या धोखा न करने वाला, यथासमय प्रतिलेखन प्रतिक्रमण एवं स्वाध्याय करने वाला, यथोचित तप करने वाला, ज्ञानादि की वृद्धि एवं शुद्धि करने वाला, समाधिवान और सदैव गुरु का बहुमान करने वाला, ऐसा गुणनिधि भिक्षु 'आचार कुशल' कहलाता है। (2) संयमकुशल :- 1. पाँच स्थावर तीन विकलेन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय जीवों की सम्यक प्रकार से यतना करने वाला, आवश्यक होने पर ही निर्जीव पदार्थो का विवेकपूर्वक उपयोग करने वाला, गमनागमन आदि की प्रत्येक प्रवृत्ति अच्छी तरह देखकर करने वाला, असंयम प्रवृत्ति करने वालों के प्रति उपेक्षा या माध्यस्थ भाव रखने वाला, यथासमय यथाविधि प्रमार्जन करने वाला, परिष्ठापना समिति के नियमों का पूर्ण पालन करने वाला, मन वचन काया की अशुभ प्रवृत्ति को त्यागने वाला, इस तरह सत्तरह प्रकार के संयम का पालन करने में निपुण (दक्ष)। 2. अथवा कोई वस्तु रखने या उठाने में तथा एषणा, शय्या, आसन, / 1263 - - - -
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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