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________________ आगम निबंधमाला समान ही बहुमान दिया गया हैं / व्यवहार सूत्र में उपाध्याय की सारी योग्यता आचार्य के समान ही कही गई हैं केवल दीक्षा पर्याय और श्रुत में अन्तर कहा गया है यथा(१) तीन वर्ष की दीक्षा पर्याय हो जाने पर उपाध्याय पद पर नियुक्त किया जा सकता है। (2) कण्ठस्थ श्रुत में अल्पतम पाँच आगम अर्थ सहित कंठस्थ हो (१.आवश्यक सूत्र २.दशवैकालिक सूत्र 3. उत्तराध्ययन सूत्र 4. आचारांग सूत्र 5. निशीथ सूत्र)। ऐसे बहुश्रुत, आचार सम्पन्न, उपाध्याय दिन-रात अनेकों या सैकड़ो(गच्छ या संघ के) साधुओं को अध्ययन कराने में लीन रहते हैं। इसलिए वे उपाध्याय कहे जाते हैं। गण या संघ के योग्य सन्तों को उपाध्याय के पास रखकर अध्ययन कराना चाहिए तभी उपाध्याय पद की सार्थकता है एवं संघ को उपाध्याय से लाभ होता है। वर्तमान में केवल सम्मान देने के लिए ही पद नियुक्ति कर दी जाती है। कर्तव्य एवं जिम्मेदारी की उपेक्षा होती है वह सर्वथा अनुचित है एवं पद व्यवस्था का दुरूपयोग है। " ऐसी स्थिति में आगमिक पद योग्यता की भी उपेक्षा करके श्रुत आदि से अयोग्यों को पद पर प्रतिष्ठित कर दिया जाता है। इस अव्यवस्था पर संघ के हितैषी महानुभावों को लक्ष्य देना चाहिए। उपाध्याय पद से पावो तुम सन्मान, सूत्र पढाने का सदा करो कृछ काम // निबंध- 28 आचार्य आदि पदों की विस्तृत योग्यता जिस गच्छ में अनेक साधु-साध्वियाँ हों, जिसके अनेक संघाटक (संघाड़े) अलग-अलग विचरते हों अथवा जिस गच्छ में नवदीक्षित, बाल या तरुण साधु-साध्वियां हो उसमें अनेक पदवीधरों का होना अत्यावश्यक है एवं कम से कम आचार्य-उपाध्याय इन दो पदवीधरों का होना तो नितांत आवश्यक है। किंतु जिस गच्छ में 2-4 साधु या 2-4 साध्वियाँ ही हों, /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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