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________________ आगम निबंधमाला समाधि में संतोष न हो तो उसे विवेक पूर्वक अकषाय भाव से अपने गच्छ या गुरु का परिवर्तन करना कल्पता है। ठाणांग सूत्र में गच्छ परिवर्तन के लिए ऐसे ही अनेक कारणों का स्पष्टीकरण किया है। बृहत्कल्प सूत्र उद्देशक-४ में गच्छ या गुरु के परिवर्तन की विवेकशील विधि का कथन किया गया है / अत: घर छोड़ने वाले साधक को कैसा भी संयोग मिल गया हो उसमें दीर्घ-दृष्टि से हानि-लाभ का परिप्रेक्षण कर गंभीरता पूर्वक नया निर्णय लेना जिनाज्ञा में है, ऐसा उपरोक्त निर्दिष्ट आगम पाठो से समझना चाहिये। ध्यान यह रहे कि आगम दृष्टिकोणों की एवं आगम विधि विधानों की अवहेलना न होनी चाहिए एवं वचन व्यवहार से गुरु रत्नाधिक की अन्य कोई भी आशातना नहीं होनी चाहिए। निबंध- 24 आगमोक्त 7 पद एवं उनकी उपयोगिता बृहत्कल्प सूत्र, उद्देशक-४, सूत्र-२० में सात पदवी के नाम दिये गये है, उनका स्वरूप इस प्रकार है(१) आचार्य :- जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य; इन पाँच आचारों का स्वयं पालन करे और आज्ञानुवर्ती शिष्यों से पालन करावे, जो साधु संघ का स्वामी हो और संघ के अनुग्रह-निग्रह, सारणवारण और धारण में कुशल हो, लोक-स्थिति का वेत्ता हो, आचार सम्पदा आदि आठ सम्पदाओं से युक्त हो वह आचार्य पद के योग्य होता है। (2) उपाध्याय :- जो स्वयं द्वादशांग श्रुत का विशेषज्ञ हो, अध्ययनार्थ आने वाले शिष्यों को आगमों का अभ्यास कराने वाला हो और व्यवहार सूत्र, उद्दे. 3, सूत्र-३ में कहे गये गुणों का एवं वहाँ निर्दिष्ट सूत्रों का धारक हो वह उपाध्याय पद के योग्य होता है। (3) प्रर्वतक :- यह पद अल्प संख्यक साधु समुदाय में आचार्य के स्थान में दिया जाता है। विशाल समूह में प्रवर्तक पदवीधर आचार्य के सहायक होते हैं। जो साधुओं की योग्यता या रुचि देखकर उनको 117
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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