________________ प्रणामासन, गरुड़ासन, बकासन, वशिष्ठासन, वातायनासन, नटराज आसन 1 एवं 2, उत्थित हस्त पादांगुष्ठासन, कूर्मासन, मयूरासन, हनुमानासन, एक पाद ' शिरासन, द्विपाद शिरासन, द्विपाद कंधरासन / पैर का पंजा एवं अग्र प्रदेश : पवनमुक्तासन 1 से 4, ताड़ासन, एक पाद प्रणामासन, वातायनासन, पादांगुठासन / प्रोस्टेट ग्रंथि : सामान्य स्वास्थ्य हेतु 'जननांग' देखिये / इसकी वृद्धि में भी वही अभ्यास कीजिये। मूलबन्ध; महाबन्ध, महामुद्रा, महाबेध मुद्रा और वज्रोली मुद्रा का अभ्यास विशेष रूप से कीजिये। पोलियोः (बाल-लकवा का उपचार एवं निराकरण) अंतर्राष्ट्रीय योग मित्र मण्डल की सभी शाखाओं में इसके उपचार हेतु नौ माह का सत्र आयोजित किया जाता है / पाठ्यक्रम निर्देश करते हुए हाल ही में इस विषय पर लघु पुस्तिका बिहार योग विद्यालय द्वारा प्रकाशित की गयी है / अभ्यासों के अंतर्गत धनुरासन, भुजंगासन, पद्मासन तथा उसके प्रकारान्तर, कन्धरासन, त्रिकोणासन, शीर्षासन, अश्व संचालनासन, हनुमानासन, वातायनासन, योगमुद्रा, नाड़ी शोधन प्राणायाम, नासिकाग्र दृष्टि एवं प्राण विद्या सम्मिलित हैं। . पीनियल एवं शीर्षस्थ ग्रन्थि : (सामान्य स्वास्थ्य) सूर्य नमस्कार, सिर के बल किये जाने वाले सभी आसन- विशेषकर शीर्षासन, गोगमुद्रा, मत्स्यासन, सुमेरु आसन, प्रणामासन, पाद हस्तासन / प्राणायाम - विशेषतः भ्रामरी और कपालभाति, शाम्भवी मुद्रा, महामुद्रा, त्राटक, नेति / पोषण-विकार : 'स्नायु-विकार' देखिये। फेफड़ा : (सामान्य स्वास्थ्य हेतु एवं दोषों के निवारणार्थ) सूर्य नमस्कार, सुप्त वज्रासन, 'उष्ट्रासन, हस्त उत्तानासन, उत्थित लोलासन, मत्स्यासन, बद्ध पद्मासन, पीछे मुड़ने वाले सभी आसन, सर्वांगासन / सभी प्राणायाम / अधिकतम दीर्घ यौगिक श्वसन / 'दमा' देखिये। . फोड़ा : अशुद्ध रक्त इसका कारण है / 'मुँहासा' देखिये / बहरापन : सिर के बल किये जाने वाले आसन / 403