________________ ज्वर : 'उदर' देखिये। जननांग : (सामान्य स्वास्थ्य हेतु एवं दोष - निवारणार्थ) - स्त्रियों के : 'मासिक धर्म' में देखिये / सूर्य नमस्कार, पवनमुक्तासन - अभ्यास 7 से 10 एवं 17 से 21, शक्ति बंध, शिथिलीकरण के सभी अभ्यास, वज्रासन एवं उसमें होने वाले आसन (विशेषतः शशांकासन, मार्जारि आसन, शशांक भुजंगासन, उष्ट्रासन, व्याघ्रासन.), कटि चक्रासन, ताड़ासन, मेरु पृष्ठासन, उत्तानासन, त्रिकोणासन, योगमुद्रा आसन, मत्स्यासन, तोलांगुलासन, पीछे झुककर किये जाने वाले सभी आसन, अर्ध मत्स्येन्द्रासन, सिर के बल किये जाने वाले आसन, गरुड़ासन, वशिष्ठासन, पाद अंगुष्ठासन, धनुराकर्षणासन, हनुमानासन। . ये आसन जनन- क्रिया हेतु स्नायुओं को तैयार करते हैं एवं शक्ति प्रदान करते हैं / ये बच्चे के जन्म के उपरांत गर्भाशय को पुनः व्यवस्थित करते हैं। गर्भधारण के प्रथम तीन मास तक इनका अभ्यास किया जा सकता है / बाद में पवनमुक्तासन के सरल अभ्यास किये जा सकते हैं। योग निद्रा, अजपाजय, ध्यान आदि शिथिलीकरण के अभ्यास बालक के जन्म के पूर्व एवं पश्चात् लाभप्रद हैं। - पुरुषों के : 'लैंगिक समस्या' के अभ्यास / ब्रह्मचर्यासन एवं मयूरासन | प्रोस्टेट ग्रंथि की समस्या हेतु 'प्रोस्टेट ग्रंथि' देखिये। स्त्रियों एवं पुरुषों के लिये हितकर : सभी बंध, अग्निसार क्रिया और नौलि / अश्विनी मुद्रा, वज्रोली मुद्रा, विपरीतकरणी मुद्रा, महा. मुद्रा, महाबेध मुद्रा, पाशिनी मुद्रा। _ विशेष : गर्भधारण काल में उड्डियान बंध, अग्निसार क्रिया एवं नौलि को नहीं करना चाहिये। लिंग संबंधी अधिकांश दोषों की उत्पत्ति तनाव व संवेदनात्मक अव्यवस्था से होती है / अतः 'चिंता' में देखिये / टांसिल : (वृद्धि) रोकथाम एवं निवारण हेतु 'गला' देखिये। डिजीनेस (dizziness) : 'चक्कर आना' देखिये / डिसपोजीशन : योग जीवन की विपरीत परिस्थितियों में शरीर को शांति एवं ... आशा प्रदान करने वाला रस स्रावित करता है / 'क्रोध' देखिये / 399