________________ स्वतंत्र रूप से या आसन के अभ्यास के साथ इन चक्रों पर ध्यान करने से शक्ति को चक्रों की ओर बहने की प्रेरणा मिलती है। इससे आत्मिक एवं मानसिक शरीर में स्थित शक्ति- केन्द्रों के जागरण में सहायता मिलती है / फलतः व्यक्ति अन्य चेतन स्तरों का अनुभव प्राप्त करने में सक्षम बनता है जिनके विषय में सामान्यतः वह अचेत रहता है। . प्रमुख चक्र सात हैं / इनकी स्थिति मेरुदंड के मूल से सिर के शीर्ष प्रदेश तक है / ये परस्पर आत्मिक नलिकाओं या नाड़ियों के जाल से संबंधित हैं / स्थूल स्तर पर ये नाड़ियाँ नाड़ीसंस्थान की नसों से संयुक्त हैं / प्रत्येक चक्र की आकृति पद्म की तरह है / प्रत्येक में दलों की संख्या निश्चित है एवं वे विशेष रंगों में हैं / दल उस विशेष चक्र की आत्मिक शक्ति तथा उसमें स्थित बाह्य एवं अंतःप्रवाह की आत्मिक नलिकाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रत्येक चक्र तत्व-विशेष के केन्द्र हैं जिनकी विशेष आकृतियाँ हैं, बीज मंत्र हैं, प्रमुख इष्ट तथा उनके वाहन एवं संबंधित विशेषतायें हैं। . प्रत्येक चक्र का पूर्ण वर्णन नीचे दिया जा रहा है. 1. मूलाधार चक्र . स्थिति के अनुसार यह सबसे नीचे का चक्र है / यह मूल केन्द्र है / मूलाधार के नीचे भी कई केन्द्र हैं जो निम्न श्रेणी के प्राणियों के चेतना-स्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं / अन्य प्राणियों में ये क्रियाशील होते हैं परन्तु मनुष्यों में पूर्णतः * सुषुप्त रहते हैं / इसका चिन्ह गहरे लाल रंग का चतुर्दलीय कमल है / प्रत्येक दल या पंखुड़ी पर मंत्र 'वं' 'शं' 'ष' 'सं' लिखा हुआ है / यह पृथ्वी-तत्व का केन्द्र है जिसकी आकृति चौकोन है तथा बीज मंत्र 'लं' है / यह हाथी पर सवार है तथा पृथ्वी की स्थिरता एवं दृढ़ता का प्रतीक है / मूलाधार के प्रमुख देवता सृष्टि के निर्माता 'ब्रह्मा' हैं तथा देवी 'डाकिनी' हैं जो शरीर की स्पर्शानुभूति का नियंत्रण करती हैं। 349