________________ खेचरी मुद्रा खेचरी मुद्रा राजयोग की विधि मुँह को बन्द कर जिह्वा के अग्र भाग से तालु का स्पर्श कीजिये / अधिक जोर न देते हुए जिह्वाग्र को अधिकाधिक पीछे मोड़िये / वैकल्पिक रूप से इस अवस्था में उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास कर सकते हैं। नये अभ्यासी कुछ देर में ही असुविधा का अनुभव करेंगे। उन्हें कुछ क्षणोपरांत जिह्वा को सामान्य स्थिति में लाकर पुनः जिह्वा का बन्ध लगाना चाहिए। नियमित अभ्यास करने से जिह्वा ताल के ऊपरी छिद्र से ऊपर चली जायेगी / इससे मस्तिष्क के नाड़ी केन्द्रों की क्रियाशीलता बढ़ती है। . हठयोग की विधि उच्च अभ्यासी को गुरु के निर्देशन में इसका अभ्यास करना चाहिए। इसके लिए धैर्यपूर्वक नियमित अभ्यास की आवश्यकता है / जिह्वा के नीचे के स्नायुओं का संबंध- विच्छेद धीरे-धीरे प्रति सप्ताह करना होगा / इसके लिए शल्य - विधि या तीव्र धार वाले पत्थर का प्रयोग किया जा सकता है। दूध दुहने की सी क्रिया द्वारा लम्बी अवधि तक जिह्वा की मालिश कीजिये / इस क्रिया को सुगम बनाने के लिए मक्खन, तेल आदि स्निग्ध द्रव का प्रयोग किया जा सकता है। महीनों इस क्रिया का अभ्यास कीजिए, जब तक कि जिह्वाग्र का स्पर्श भ्रूमध्य से होने न लगे / जिह्वा की लम्बाई इतनी बढ़ जाने पर खेचरी मुद्रा का अभ्यास सम्भव हो जाता है। जिह्वा को मोड़कर सावधानीपूर्वक तालु के ऊपरी छिद्र से अधिक से अधिक भीतर ले जाने की कोशिश कीजिए | इससे प्रभावित होकर श्वास - मार्ग बन्द हो जायेगा और 'ललना चक्र' जागृत होगा। श्वास खेचरी मुद्रा के प्रारम्भिक अभ्यासी श्वास - क्रिया सामान्य रखें। 310