________________ पुराने अभ्यासी 15 मिनट तक इसका अभ्यास कर सकते हैं / नये अभ्यासी कछ सेकेण्ड ही इसका अभ्यास करें तथा प्रतिदिन कछ सेकेण्ड की अवधि बढ़ाते जायें। सामान्य स्वास्थ्य - लाभ हेतु पाँच मिनट तक का अभ्यास पर्याप्त है। एकाग्रता आध्यात्मिक : विशुद्धि चक्र पर / शारीरिक एवं मानसिक : चुल्लिका ग्रन्थि या श्वास - प्रक्रिया पर / क्रम हलासन के पूर्व सर्वांगासन का अभ्यास सर्वोत्तम है। इसके विपरीत आसन मत्स्यासन, उष्ट्रासन या सुप्त वज्रासन हैं। सर्वांगासन एवं हलासन का अभ्यास जितनी देर किया जाये, उसकी आधी अवधि तक विपरीत आसन का अभ्यास करना चाहिए। सीमाएँ ___उच्च रक्त-चाप, दिल की बीमारी, चुल्लिका ग्रन्थि व यकृत की समस्या में .. तथा तिल्ली बढ़ने पर इस आसन का अभ्यास वर्जित है। लाम चुल्लिका ग्रन्थि को क्रियाशील बनाता है, फलतः रक्त- परिवहन, पाचन, जननेन्द्रिय, स्नायुओं एवं ग्रन्थि - संस्थानों में संतुलन लाता है। . शरीर का उचित विकास करता है। मस्तिष्क को उचित मात्रा में रक्त पहुँचाकर मनोवैज्ञानिक बीमारियों को दूर करता है। दमा, खाँसी तथा. हाथी पाँव की बीमारी को दूर करता है। . गुदा- द्वार की मांसपेशियों के तनाव को दूर करता है जिससे बवासीर की बीमारी में लाभ पहुँचता है। पैरों, उदर - प्रदेश, प्रजननांग, मेरुदण्ड तथा गर्दन को शक्ति देता है। छाती की चर्बी दूर करता है। हाइड्रोसील की बीमारी को रोकता है। प्रदर एवं मधुमेह की बीमारी का उपचार करता है। इस आसन से शारीरिक तापक्रम पर नियंत्रण रखा जा सकता है।