________________ सादर समर्पण A ddit सिद्धान्तमहोदधि कर्मसाहित्यनिष्णात परमकृपामृतसिन्धु विशालगच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरजो महाराज साहेब ! मानवीने स्वर्गना अमृतनी पिपासा त्यां सुधी ज रहे छे, ज्यां सुधी आपना कृयामृतर्नुपान नथी कयु. आपना कृणामृतनु पान करवा श्रीमंतो लक्ष्मीने रझळती मूकीने आपनी सेवा करे छे. कलैया कुंवर जेवा नव युवानो संसारना रंग-राग भूलीने आपनी पाछळ दोड़े छे. पुण्यशाली मानव ज आपना कृपामृतनु पान करी शके छे. आपना कृपामृतनी महत्तानु वास्तविक वर्णन करवा मने शब्दो ज नथी मळता. छतां मारो अनुभव अटलुतो अवश्य कहे छे के स्वर्गर्नु अमृत विबुध (देवता) थया पछी प्राप्त थाय छे; ज्यारे आपर्नु कृपामृत तो अविबुधने (मूर्खने) पण विबुध (विद्वान) बनाववानी असाधारण शक्ति धरावे छे. अनिवर्णनीय आपना कृपामृतना पानथी ज थयेल यत् किंचित् आ प्रयत्नने आजीवन आपना कृपामतर्नुपान मळे अवी पवित्र भावनाथी आपना कल्याणकारी कर-कमलमां समर्पण करुं छु. -आपनो कृपापात्र शिशु राजशेखर