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________________ 566 . अंग-पविट्ठ सुत्ताणि / क्खायमिति वयमाणस्स णो सुपच्चक्खायं भवइ दुपच्चक्खायं भवइ, एवं खलु से दुपच्चक्खाई सव्वपाणेहि जाव सव्वसत्तेहि पच्चक्खायमिति वयमाणे णो सच्चं भासं भासइ मोसं भासं भासइ, एवं खलु से मुसावाई सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहि तिविहं तिविहेणं असंजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले यावि भवइ / जस्स णं सम्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहि पच्चक्खायमिति वयमाणस्स एवं अभिसमण्णागयं भवइ-इमे जीवा इमे अजीवा इमे तसा इमे थावरा, तस्स गं सम्वपाणेहि जाव सव्वसत्तेहि पच्चक्खायमिति वयमाणस्स सुपच्चक्खायं भवइ णो दुपच्चक्खायं भवइ / एवं खलु से सुपच्च. क्खाई सव्वपाहं जाब सम्वसहि पच्चक्खायमिति वयमाणे सच्चं भासं भासइ णो मोसं भासं भासइ, एवं खलु से सच्चवाई. सव्वपाणेहिं जाव सव्व. सहि तिविहं तिविहेणं संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे अकिरिए संवुडे एगंतपंडिए यावि भवइ / से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव सिय दुपच्च. क्खायं भव // 270 // काविहे गं भंते ! पच्चक्खाणे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते. तंजहा-मूलगुणपच्चक्खाणे य उत्तरगुणपच्चक्खाणे य। मूलगुणपच्चक्खाणे गं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे . पण्णत्ते, तंजहा-सव्वमूलगुणपच्चक्खाणे य देसमूलगुणपच्चक्खाणे य / सव्वमूल. गुणपच्चक्खाणे गं भंते ! कइविहे पण्णते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं जाव सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं / देसमूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कई विहे पण्णते? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं जाव थूलाओ परिग्गहाओ वेरमणं / उत्तरगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-सव्वुत्तरगुणपच्चक्खाणे य देसुत्तरगुणपच्चक्खाणे य / सव्वुत्तरगुणपच्च. क्खाणे गं भंते ! कइविहे पण्णते ? गोयमा ! दसविहे पण्णते, तंजहा-अणा. गय 1 मइक्कतं 2 कोडीसहियं 3 णियंटियं 4 चेव / सागार 5 मणागारं 6 परिमाणकडं 7 गिरवसेसं 8 // 1 // सा केयं 6 चेव अद्धाए 10 पच्चक्खाणे भवे दसहा / देसुत्तरगुणपच्चक्खाणे गं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! सत्त. विहे पण्णत्ते, तंजहा-दिसिव्वयं 1 उवभोगपरिभोगपरिमाणं 2 अणत्यदंडवेरमणं 3 सामाइयं 4 देसावगासियं 5 पोसहोववासो 6 अतिहिसंविभागो 7
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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