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________________ 522 अंग-पविढ सुत्ताणि पडहस० भंभास० होरंभस० भेरिसदाणि वा झल्लरीस० दुंदुहिस० तयाणि वा वितयाणि वा घणाणि वा झुसि राणि वा ? हंता गोयमा ! छउमत्थे णं मणसे आउडिज्जमाणाई सद्दाइं सुणेइ, तंजहा-मंखसद्दा णि वा जाव झुसिराणि वा / ताई भंते ! किं पुट्ठाई सुणेइ अपुट्ठाई सुणेइ ? गोयमा ! पुढाई सुणेइ णो अपुट्ठाई सुणेइ, जाव णियमा छद्दिसि सुणे इ / छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से कि आरगयाई सद्दाइं सुणेइ पारगयाइं सद्दाई सुणेइ ? गोयमा ! आरगयाइं सद्दाई सुणेइ णो पारगयाइं सद्दाई सुणेइ / जहा णं भंते ! छ उमत्थे मणुस्से आरगयाइं सद्दाई सुणेइ णो पारगयाइं सहाई सुणेइ तहा भंते ! केवली मणुस्से कि आरगयाई सद्दाइं सुणेइ पारगयाई सद्दाई सुणेइ ? गोयमा ! केवली णं आरगयं वा पार. गयं वा सव्वदूरमूलमणंतियं सदं जाणेइ पासेइ / से केण→णं तं चेव केवली णं आरगयं वा पारगयं वा जाव पासइ ? गोयमा ! केवली णं पुरथिमेणं मियंपि जाणइ अमियंपि जा० एवं दाहिणणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं उड्ढं अहे मियंपि जा० अमियं पि जा० सव्वं जाणइ केवली सव्वं पासइ केवली सवओ जाणइ पासइ सव्वकालं जा० पा० सव्वभावे जाणइ केवली सव्वभावे पासइ केवली। अणंते णाणे केवलिस्स अणंते दंसगे केवलिस्स णिव्वुडे णाणे केवलिस्स णिबुडे सणे केवलिस्स से तेणठेणं जाव पासइ // 184 // छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से हसेज्ज वा उस्सुयाएज्ज वा? हता! हसेज्ज वा उस्सुया. एज्ज वा। जहा णं भंते ! छउमत्थे मणुस्से हसेज्ज जाव उस्सु० तहा णं केवलीवि हसेज्ज वा उस्सुयाएज्ज वा? गोयमा! णो इणठे समझें / सेकेणट्टेणं भंते ! जाव णो णं तहा केवली हसेज्ज वा जाव उस्सुयाएज्ज वा ? गोयमा ! जण्णं जीवा चरित्तमोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं हसंति वा उस्सुयायंति वा से णं केवलिस्स पत्थि, से तेणठेणं जाव णो णं तहा केवली हसेज्ज वा उस्सुयाएज्ज वा। जीवे णं भंते ! हसमाणे वा उस्सुयमाणे वा कई कम्मपयडीओ बंधइ ? गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्टविहबंधए वा / रइएणं भंते ! हसमाणे वा उस्सुयमाणे वा कइ कम्मपयडीओ बंधइ ? गोयमा ! सतविहबंधए वा अविहबंधए वा, जीवा णं भते ! हसमाणा वा उस्सुयायमाणा वा कइ कम्मपयडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधगा वा अट्टविहबंधगा वा, गेरइयाणं पुच्छा, गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा अहवा सतविहबंधगावि अट्ठविहबंधगावि,
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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