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________________ 516 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि जंबद्दीवे 2 दाहिगड्ढेवि दिवसे जाव राई भवइ / जया णं भंते ! जंब० मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं दिवसे भवइ तथा णं पच्चत्यिमेणवि दिवसे, भवइ जया णं पच्चत्यिमेणं दिवसे भवइ त्या णं जंवूदीवे 2 मंदरस्त पव्वयस्स उत्तरदाहिणणं राई भवइ ? हंता गोयमा ! जया णं जंब० मंदरपुरस्थिमेणं दिवसे जाव राई भवइ / जया णं भंते ! जंजूदीवे 2 दाहिणड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमहुते दिवसे भवइ तथा णं उत्तरड्डेवि उक्कोसए अवारस नहुने दिवसे भवइ जया णं उत्तरड्ढे उक्कोसए अट्ठार सनुहुत्ते दिवसे भवइ, तया गं जंबूकोवे 2 मंदरल्स पुरस्थिमपच्चस्थिनेणं जहणिया दुवालसनुहु ता राई भवइ ? हता गोयमा ! जया णं जंबू० जाव दुवालसमुहु ता राई भवइ / जया णं जंबू० मंदरस्स पुरथिमेणं उक्कोसए अद्वारस जाव तया णं जंबदीवे 2 पच्चत्थिमेणवि उक्को० अट्ठारसमुहुने दिवसे भवइ जया णं पच्चत्यिमेणं उक्कोसए अट्ठारसमहत्ते दिवसे भवइ तथा गं भंते ! जंन हीबे 2 उत्तर० दुवालसमुहता जाव राई भवइ ? हंता गोयमा ! जाव भवइ / जया णं भंते ! जंबू० दाहिगड्ढे अट्ठारसमुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं उत्तरे अट्ठारसमुहताणतरे दिवसे भवइ जया णं उत्तरे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया गं अंब० मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमेणं साइरेगा दुवालसमुहुत्ता राई भवइ ? हता गोयमा ! जया णं जंबू० जाव राई भवइ / जया णं भंते ! जंबूदीवे 2 पुर. स्थिमेणं अट्ठारसमुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं पच्चत्थिमेणं अट्ठारसमुहुताणंतरे दिवसे भवइ जया णं पच्चत्थिमेणं अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवले भवइ तया णं जंबू० 2 मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणणं साइरेगा दुवालसमुहुत्ता राई भवइ ? हंता गोयमा ! जाव भवइ / एवं एएणं कमेणं ओसारेयव्वं सत्तरसमुहुत्ते दिवसे तेरसमुहुता राई भवइ सत्तरसमुहुत्तागंतरे दिवसे साइरेगा तेरसमुहत्ता राई सोलसमुहुत्ते दिवसे चोद्दसमुहुत्ता राई सोलसमुहु. ताणंतरे दिवसे साइरेगचउद्दसमुहुत्ता राई पण्ण रसमुहुत्ते दिवसे पण्ण रसमुहुत्ता राई पण्णरसमहुत्ताणंतरे दिवसे साइरेगा पण्णरसमुहुत्ता राई चोदसमुहुत्ते दिवसे सोलसमुहत्ता राई चोद्दसमुहुत्ताणंतरे दिवसे साइरेगा सोलसमहत्ता राई तेरसमुकुत्ते दिवसे सत्तरसमुहुत्ता राई तेरसमहु ताणंतरे दिवसे साइरेगा सत्तरसमुहुत्ता राई / जया णं जंबू० दाहिणड्ढे जहण्णए दुवालस.
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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