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________________ 1304 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि चेडियाचक्कवालपरिवडा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवा. गच्छित्ता तिक्खुत्तो जाव वंदइ णमंसइ, वंदित्ता गमंसित्ता पच्चासणे णाइदूरे जाव पंजलिउडा ठिइया चेव पज्जवासइ // 53 / / तए णं समणे भगवं महा. वीरे अग्गिमित्ताए तीसे य जाव धम्म कहेइ / तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हतुवा समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं व्यासी-सहामि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुम्भे वयह, जहा ण देवाणप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव पदवइया णो खलु अहं तहा संचाएमि देवाणु. प्पियाणं अंतिए मुण्डा भवित्ता जावं अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणध्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिज्जिस्सामि' / अहासुहं देवाणु. प्पिया ! मा पडिबंध करेह / तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तमिक्खावइयं दुवालसविह गिहि (सावग)धम्म पडिवज्जइ 2 ता समणं भगवं महावीरं वदइ णमंसइ वंदित्ता णमसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहिता जामेव दिसं पाउब्भया तामेव दिस पडिगया। तए णं समणे भगवं महावीरे अग्णया कयाइ पोलासपुराओ णयराओं सहस्संब. वणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्ख मित्ता बहिया जणवविहार विहरइ // 54 // तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ / तए णं से गोसाले मखलिपुत्ते इमोसे कहाए लद्धदठे समाणेएवं खलु सदालपुत्ते आजीवियसमयं वमित्ता समणाणं णिग्गंथाणं दिदिपडिवणे, तं गच्छामि गं सहालपुत्तं आजीविओवासयं समणाणं णिग्गंथाणं दिढेि वामेता पुणरवि आजीवियदिट्टि गेहावित्तए' तिकटु एवं संपेहेइ, संपेहिता आजीवियसंघसंपरिडे जेणेव पोलासपुरे णयरे जेणेव आजीवियसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आजीवियसभाए भण्डगणिक्खेवं करेइ, करेत्ता कइवएहिं आजीविएहि सद्धि जेणेव सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणेव उदागच्छइ / तए णं से सहालपुत्ते समणोवासए गोसालं मखलिपुतं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता णो आढाइ, णो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे तुसिीए संचि. दुइ // 55 / / तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तेणं समणोवासरणं अणा. ढाइज्जमाणे अपरिजाजिज्जमाणे पीढफलगसिज्जासंथारद्वयाए समणस्स भगवओ महावीरस्स गणकित्तणं करेमाणे सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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