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________________ 1256 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि अत्थामे 4 जाहे णो संचाएइ सुसुमं दारियं णिवाहित्तए ताहे संते तंते परितंते णीलप्पलं असि परामुसइ 2 ता सुंसुमाए दारियाए उत्तमंग छिदइ 2 त्ता तं गहाय तं अगामियं अडवि अणुप्पविठे / तए णं (से) चिलाए तीसे अगामियाए अडवीए तहाए (छुहाए) अभिभूए समाणे पम्हु (ह) टूदिसाभाए सोहगृहं चोरपल्लि असंपत्ते अंतरा चेव कालगए। एवामेव समकाउसो ! जाव पव्यइए सभाणे इमस्स ओरालियसरीरस्स वतासवस्स जाव विद्धसणधम्मस्स वण्णहेउं जाव आहारं आहारेइ से गं इहलोए चेव बहूणं समणाणं 4 हीलणिज्जे जाव अणुपरियट्टिस्सइ जहा व से चिलाए तक्करे / तए णं से धणे सत्थवाहे पंचहि पुत्तेहि अप्पछठे चिसायं [तीसे अगामियाए सव्वओ समंतः] परिधाडेमाणे 2 (तोहाए छुहाए यं) संते तंते परितंते णो संचाएइ चिलायं चोर. सेणावई साहत्धि गिहित्तए / से णं तो पडिणियत्तइ 2 ता जेणेव सा सुसुगा दारिया चिलाएणं जीवियाओ ववरोविल्लि) या तेणेव उवागच्छइ 2 ता सुंसुमं दारियं चिलाएणं जीवियाओ ववरोवियं पासइ 2 ता परसुणियत्तेय चंपगपायवे / तए णं से धणे सत्यवाहे (पंचहि पु०) अप्पछठे आसत्थे कवमाणे कंद. माणे विलवमाणे महया 2 सद्देणं कुहुकुहुस्स परुण्णे सुचिरं कालं बाह(प्प) मोक्खं करेइ / तए णं से धणे सत्थवाहे पंचहिं पुहि अप्पछठे चिलायं तीसे अगा. मियाए सव्वओ समंता परिधाडेमाणे तण्हाए छुहाए य परम्भं (रद्धं) ते समाणे तीसे अगामियाए अडवीए सवओ समंता उदगस्स मग्गणगवेसणं करेइ 2 ता संते तंते परितंते णिविष्णे समाणे] तीसे अगामियाए (अडवीए उदगस्स मग्गणगवेसणं करेमाणे णो चेव णं उदगं आसाएइ तए णं) उदगं अणासाए. माणे जेणेव संसुमा जीवियाओ ववरोविया तेणेव उवागच्छइ 2 ता जेठं पुत्तं धण्णे (स.) सद्दावेइ 2 ता एवं वयासी-एवं खल पुत्ता! सुसुमाए दारियाए अदाए चिलायं तक्करं सवओ समंता परिधाडेमाणा तण्हाए छुहाए य अभि. भया समाणा इमीसे अगामियाए अडवीए उदगस्स मग्गणगवेसणं फरेमाणा णो चेव णं उदगं आसादेमो / तए गं उदगं अणासाएमाणा णो संचाएमो राय. गिहं संपावित्तए / तणं तुम्भे ममं देवाणप्पिया ! जीवियाओ ववरोवेह [मम] मंसं च सोणियं च आहारेह० तेणं आहारेणं अव (हिट्ठा) थद्धा समाणा तओ पच्छा इमं अगामियं अवि गित्थरिहिह रायगिहं च संपाविहह मित्तणाइ० अशि. समागच्छिहिह अत्थस्स य धम्मस्स य पुग्णस्स य आभागी भविस्संह / तए णं
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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